धर्म

करवा चौथ: अगर पहली बार करने जा रही हैं निर्जला व्रत, तो जान लें ये जरूरी बातें

भोपाल। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अखंड सौभाग्य के लिए महिलाएं करवाचौथ का व्रत करती हैं। इस बार करवा चौथ का व्रत 24 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को किया जाएगा। महिलाएं निर्जला उपवास रख कर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। धनबाद में यह त्योहार मुख्यत: मारवाड़ी और पंजाबी समुदाय के लोग ही मनाते हैं। हालांकि आजकल सभी वर्ग के लोगों के बीच करवाचौथ का त्योहार प्रचलित हो चुका है। दिनभर निर्जला उपवास रात में चांद निकलने के बाद समाप्त होता है।

सरगी की परंपरा

बहुत खास होती है सरगी की परंपरा

करवाचौथ के त्योहार में सरगी का भी काफी महत्व है। सरगी दरअसल करवाचौथ की ही एक परंपरा है, जो निर्जला व्रत प्रारंभ करने से पूर्व की जाती है। परंपरा के अनुसार सास अपनी बहू को थाल में सजा कर सरगी की सामग्री देती हैं, जिसमें पूजन सामग्री भी होती है। सरगी के लिए प्रातः तीन बजे से लेकर चार बजे तक का समय सही माना जाता है। बहू को सरगी लेते समय अपनी सास से आशीर्वाद लेना चाहिए तत्पश्चात सरगी खाकर व्रत का आरंभ करना चाहिए।

चंद्रमा को अर्घ्य

चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण

सरगी खाने के बाद व्रत आरंभ हो जाता है इसके बाद महिलाओं को पूरे दिन बिना अन्न जल के व्रत रखना होता है। करवा चौथ पर पूजन के शुभ मुहूर्त में मां करवा, भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए और करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए, इसके बाद रात में चंद्रमा निकलने के पर पूजन और अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करना चाहिए। इसके बाद घर के सभी बड़ो आशीर्वाद लेना चाहिए।

सास के लिए बायना

सास के लिए निकालें बायना

अगर आप पहली बार व्रत करने जा रही हैं तो आपको बायना के बारे में पता होना चाहिए। करवा चौथ पर बहु के द्वारा भी सास के लिए जो उपहार दिए जाते हैं उसे बायना कहा जाता है। इसमें वस्त्र, खाने का सामान व श्रंगार का सामान होता है। इन सभी चीजों को पूजन के समय साथ में रखना चाहिए और बाद में इसे अपनी सास या फिर किसी सुहागिन स्त्री को दक्षिणा के साथ उपहार में देना चाहिए।

12 से 16 सालों तक निरंतर व्रत रखना है आवश्यक

सुहागिन स्त्रियों के लिए करवा चौथ का व्रत बेहद महत्वपूर्ण होता है यदि आप करवा चौथ का व्रत आरंभ करने जा रही हैं तो इस बात को जानना आपके लिए आवश्यक है कि करवा चौथ का व्रत विवाह के बाद 12 या फिर 16 सालों तक निरंतर रखना चाहिए। इसके बाद व्रत का उद्यापन किया जा सकता है। आप अपनी क्षमतानुसार यह व्रत आजीवन भी कर सकती हैं।

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