
वॉशिंगटन डीसी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने सदस्य देशों से अपील की है कि वे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर WHO में फिर से शामिल होने के लिए दबाव डालें। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, घेब्रेयसस ने पिछले हफ्ते विदेशी राजनयिकों के साथ एक बैठक में कहा था कि ट्रंप के WHO से बाहर निकलने के फैसले से अमेरिका को वैश्विक बीमारियों से जुड़ी अहम जानकारियां नहीं मिल पाएंगी।
अमेरिका के हटने से होगी फंडिंग समस्या
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, WHO की पिछले हफ्ते हुई बजट बैठक में इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई कि अमेरिका के बाहर निकलने से उत्पन्न फंडिंग संकट को कैसे प्रबंधित किया जाए। अमेरिका WHO का सबसे बड़ा दानदाता है और 2024-2025 के लिए WHO को लगभग 958 मिलियन डॉलर (लगभग 7,900 करोड़ रुपए) देने वाला था। यह राशि WHO के कुल 6.9 अरब डॉलर के बजट का 14% हिस्सा है।
ट्रंप का आरोप, WHO ने कोरोना संकट को सही से नहीं संभाला
डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद WHO से हटने के लिए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। ट्रंप का आरोप था कि WHO ने कोरोना महामारी के संकट को सही से नहीं संभाला और अमेरिका से भारी फंड लेने के बावजूद इसका फायदा अन्य देशों को अधिक मिला।
पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने WHO से बनाई थी दूरी
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने WHO से दूरी बनाई हो। अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने WHO की कोरोना महामारी से निपटने की रणनीति की आलोचना की थी और अमेरिका को इस संगठन से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। हालांकि, जो बाइडेन ने 2021 में राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ट्रंप के इस आदेश को पलट दिया था और अमेरिका को WHO में वापस शामिल कर दिया था।
अमेरिका WHO को देता है सबसे अधिक फंडिंग
अमेरिका WHO का सबसे बड़ा वित्तीय सहयोगी है। 2023 में WHO के कुल बजट का 20% हिस्सा अमेरिका ने दिया था। अगर अमेरिका दोबारा WHO से बाहर होता है, तो संगठन को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा, जिससे कई महत्वपूर्ण स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर असर पड़ेगा।
WHO के हेल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम्स खतरे में
WHO की बैठक में पेश किए गए एक दस्तावेज में यह खुलासा हुआ कि उसके हेल्थ इमरजेंसी प्रोग्राम्स की लगभग 40% फंडिंग अमेरिका से आती है। अमेरिका के बाहर मिडिल ईस्ट, यूक्रेन और सूडान जैसे संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में पोलियो और HIV जैसी बीमारियों से जुड़े कई कार्यक्रम मुश्किल में पड़ सकते हैं।
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