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इतिहास के पन्नों में समा रही गौर नदी, कई जगह पर थमी

नरेंद्र सिंह जबलपुर। गौर नदी कभी जिले की प्रमुख नदी होती थी। यह नदी मंडला से निकलती है और जबलपुर में जमतरा पुल के पास नर्मदा में मिलती है। यहां के पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि करीब 50 साल पहले तक इसका पानी पीने में उपयोग करते थे और नदी भी निर्बाध रूप से बहती थी। अब हालात बदल चुके हैं। इस नदी को गौर की जगह गोबर नदी कहा जाने लगा है। आसपास करीब सैकड़ा भर छोटी-बड़ी डेयरियों का अपशिष्ट इस नदी में समाता है। वहीं, पेड़ों की निर्ममता से की गई कटाई ने इस नदी का अस्तित्व ही बदल दिया है। इस नदी में जल प्रवाह केवल बारिश में ही देखने मिलता है। गौर नदी को सुरक्षित करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई प्रयास न होना आश्चर्यजनक है। अलबत्ता समाजसेवी और नदी प्रेमी जरूर कभी-कभी मुहिम चलाते हैं, मगर ये ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।

गोबर व गंदगी लेकर मिलती है नर्मदा में

गौर नदी मंडला से निकलती है। इसके बाद जबलपुर की सीमा में आकर यहां किनारों पर स्थित डेयरियों की गंदगी लेकर जमतरा पुल के पास नर्मदा में मिलती है। नर्मदा में गौर नदी का प्रदूषित पानी न मिले, इसके लिए आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इससे नर्मदा का जल भी दूषित हो रहा है। गौर का अस्तित्व आने वाले समय में खत्म भी हो सकता है। यदि इसे बचाने के लिए नियोजित कदम न उठे तो यह नदी इतिहास के पन्नों में खो जाएगी।

हमने अपने बचपन में गौर नदी को कल-कल बहते देखा है, यहां मेले लगते थे लोग नदी किनारे खाना बनाकर खाते थे। 1970 के बाद से इस नदी की दुर्दशा होने लगी। जब से डेयरियां लगी हैं, तब से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। – संतोष रजक, बुजुर्ग

निवासी गौर क्षेत्र अब गौर नदी से केवल गोबर की सड़ांध और डेयरियों के मृत पशुओं के अवशेष देखने मिलते हैं। कई जगह से धार टूट चुकी है। इसका साफ-स्वच्छ स्वरूप हमने देखा है, जो अब मुश्किल लगता है। – संतू गोंटिया, रहवासी गौर क्षेत्र

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