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चंद्रयान-3 ने चांद की भेजी नईं तस्वीरें : धरती से नहीं दिखता यह हिस्सा, 23 अगस्त को साउथ-पोल पर उतरने वाला पहला देश बनेगा भारत

बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मिशन चंद्रयान-3 इतिहास बनाने से बस कुछ कदम दूर है। रूस का लूना-25 स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया है, ऐसे में अब अगर चंद्रयान-3 मिशन सक्सेसफुल होता है तो भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा। इसी बीच लैंडर ने चंद्रमा के फार साइड यानी उस हिस्से की तस्वीरों को कैप्चर किया है, जो कभी पृथ्वी की तरफ नहीं दिखता।

चंद्रमा के साउथ पोल की नई तस्वीरें जारी

इन तस्वीरों को विक्रम लैंडर में लगे लैंडर हजार्ड डिटेक्शन एंड अवॉयडेंस ने लिया। चार तस्वीरों में अलग-अलग जगहों पर मौजूद गड्ढों की तस्वीरें हैं। कुछ गड्डे बेहद भयानक दिख रहे हैं। यह कैमरा लैंडर को सेफ लैंडिंग एरिया लोकेट करने में मदद करेगा। इसे इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC), अहमदाबाद ने बनाया है।

https://twitter.com/isro/status/1693469304619188516?s=20

लैंडिंग साइट पर सूरज निकलने का इंतजार

चंद्रयान-3 का दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात 1 बजकर 50 मिनट पर पूरा हुआ। इस ऑपरेशन के बाद लैंडर की चंद्रमा से न्यूनतम दूरी 25 किमी और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर रह गई है। इसरो ने ट्वीट कर बताया कि, अब लैंडर की इंटरनल जांच की जाएगी और जब तक लैंडिंग साइट पर सूरज नहीं निकलता तब तक इंतजार किया जाएगा। चंद्रयान-3 को 23 अगस्त को शाम करीब 5:45 बजे 25 Km की ऊंचाई से लैंड कराने की कोशिश की जाएगी।

चंद्रमा की सतह पर नजर आए गड्ढे

17 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने प्रोपल्शन मॉड्यूल को छोड़ दिया था और खुद आगे चल रहा था। जिससे वह चांद के और नजदीक पहुंच गया है। 18 अगस्त की दोपहर से पहले विक्रम लैंडर और प्रोपल्शन मॉड्यूल 153 km x 163 km की ऑर्बिट में थे। लेकिन करीब 4 बजे दोनों के रास्ते बदल गए।

चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल के गुरुवार (17 अगस्त) को अलग होने के बाद ली गईं तस्वीरों में चंद्रमा की सतह पर गड्ढे दिखाई देते हैं, जिन्हें इसरो द्वारा जारी की गईं तस्वीरों में ‘फैब्री’, ‘जियोर्डानो ब्रूनो’ और ‘हरखेबी जे’ के रूप में चिह्नित किया गया है। 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैंडर मॉड्यूल के अलग होने के ठीक बाद ‘लैंडर इमेजर’ (एलआई) कैमरा-1 द्वारा ली गईं तस्वीरें शामिल हैं। सेपरेशन के बाद लैंडर ने प्रोपल्शन मॉड्यूल से कहा- ‘थैंक्स फॉर द राइड मेट’। अब प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में 3-6 महीने रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा।

चंद्रमा की अंतिम कक्षा में चंद्रयान-3

क्या है प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल ?

अब चंद्रयान के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर अलग होने के लिए तैयार हैं। दरअसल, चंद्रयान-3 में एक प्रोपल्शन या प्रणोदक मॉड्यूल है। इसका मुख्य काम लैंडर को चंद्रमा के करीब लेकर जाने का था। लैंडर में एक रोवर शामिल हैं। भारत के तीसरे चंद्र मिशन का मुख्य उद्देश्य लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारना है। चंद्रयान-2 मिशन में लैंडर पर नियंत्रण खो देने की वजह से उसकी सॉफ्ट लैंडिंग की जगह क्रैश लैंडिंग हो गई थी। इसके कारण लैंडर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया था।

5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में किया था प्रवेश

22 दिन के सफर के बाद पांच अगस्त को शाम करीब 7:15 बजे चंद्रयान ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। उसके बाद इसकी तीन बार ऑर्बिट बदली जा चुकी है।

  • 6 अगस्त : पहली बार चंद्रयान-3 की ऑर्बिट घटाई गई। जिसके बाद चंद्रयान 170 km x 4313 km की ऑर्बिट में घूम रहा था। इसी दिन चंद्रयान ने चांद की पहली तस्वीरें जारी की थीं।
  • 9 अगस्त : दूसरी बार चंद्रयान-3 की ऑर्बिट घटाई गई। जिसके बाद चंद्रयान 174 km x 1437 km किलोमीटर वाली छोटी अंडाकार कक्षा में घूम रहा था।
  • 14 अगस्त : तीसरी बार चंद्रयान-3 की ऑर्बिट घटाई गई। जिसके बाद चंद्रयान 150 Km x 177 Km किलोमीटर की ऑर्बिट में घूम रहा था।

कब-कब लॉन्च हुए चंद्रयान?

  • चंद्रयान-1 : साल 2008
  • चंद्रयान-2 : साल 2019
  • चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जबकि चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ-साथ लैंडर और रोवर भी थे। वहीं चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं होगा, सिर्फ लैंडर और रोवर ही रहेंगे।
  • इस बार भी इसरो ने लैंडर का नाम ‘विक्रम’ और रोवर का ‘प्रज्ञान’ रखा है। लैंडर और रोवर के चंद्रयान-2 में भी यही नाम थे।

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