
उमरिया। आदिवासी संस्कृति और बैगा चित्रकला को देश-विदेश में पहचान दिलाने वाली सुप्रसिद्ध चित्रकार पद्मश्री जोधइया बाई बैगा के निधन से कला और संस्कृति जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। रविवार शाम उनका निधन हो गया, जिसके बाद सोमवार सुबह उनके गृह ग्राम में शोक सभा आयोजित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस दौरान जिले के कलेक्टर धरणेन्द्र कुमार जैन, पुलिस अधीक्षक निवेदिता नायडू, पूर्व सांसद ज्ञान सिंह, विभागीय उच्च अधिकारी, प्रबुद्धजन, मीडियाकर्मी और बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब
जोधइया बाई की अंतिम यात्रा में उमरिया जिले के कलेक्टर धरणेन्द्र कुमार जैन और पुलिस अधीक्षक निवेदिता नायडू ने श्रद्धांजलि देते हुए उनके शव को कांधा दिया। जिले के गणमान्य नागरिकों ने इस मौके पर कहा कि उनका जाना आदिवासी समाज और कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
आदिवासी समाज की आवाज थीं जोधइया बाई
पद्मश्री जोधइया बाई बैगा का जीवन आदिवासी समाज की आवाज और उनकी कला परंपराओं का प्रतीक रहा। उन्होंने 70 वर्ष की उम्र में चित्रकला का प्रशिक्षण लिया और अपनी मेहनत और अद्वितीय प्रतिभा के दम पर बैगा चित्रकला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। उनकी प्रेरणा से ग्राम लोढ़ा की दर्जनों बैगा महिलाओं ने चित्रकारी की कला सीखी और इसे अपने जीवनयापन का साधन बनाया। जोधइया बाई ने न केवल आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उनके लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई।
प्रमुख उपलब्धियां
पद्मश्री सम्मान- आदिवासी कला को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
राष्ट्रीय नारी सम्मान- उनकी उपलब्धियों और आदिवासी समाज के उत्थान में उनके योगदान के लिए यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया।
आदिवासी संस्कृति की संरक्षक- उन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से आदिवासी परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखा।
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