
पल्लवी वाघेला-भोपाल। दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 हुई घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। यह दिन निर्भया गैंगरेप पीड़िता की हिम्मत के लिए भी जाना जाता है। अमूमन रेप पीडिताएं आगे नहीं आतीं या केस दर्ज होने के बाद भी समझौता कर लेती हैं। लेकिन, आज हम बात कर रहे हैं भोपाल की ऐसी निर्भयाओं की, जिन्होंने न्याय की लड़ाई जारी रखी। इनमें से किसी ने करियर की नई ऊंचाई को छुआ तो कोई सिंगल मदर के रूप में बच्चे का भविष्य संवार रही है।
रक्षक बना भक्षक
15 साल की अमीषा (परिवर्तित नाम) अपनी बिल्डिंग के गार्ड को चाचा कहकर बुलाती थी। उसकी सिंगल मदर जॉब के लिए जाती थी तो गार्ड को बच्ची का ध्यान रखने कहती थी। लेकिन, 70 वर्षीय गार्ड ने उसका कई बार रेप किया और मां को मार डालने की धमकी दी। बेटी के गर्भवती होने पर मां को पता चला। 2014 में गौरवी की मदद से एफआईआर हुई। मां के सपोर्ट और अमीषा की हिम्मत से तीन साल बाद अपराधी को सजा हुई। वर्तमान में अमीषा लॉ स्टूडेंट हैं और बच्चियों की मदद भी करती हैं। अमीषा ने बताया -वह डिप्रेशन में चली गई थी। मां और काउंसलिंग की मदद से हिम्मत आई।
भीख में नहीं चाहिए शादी
18 वर्षीय रचना (परिवर्तित नाम) अपने 20 वर्षीय फैमिली फ्रेंड को पसंद करती थी। युवक ने उसका रेप किया तो उसने परिवार को यह बात बताई और कहा कि उसे एफआईआर ही करवाना है। सामने वाला पक्ष शादी और समझौते को कह रहा था। रचना ने इंकार कर दिया। 2018 से रचना केस लड़ रही है, उसकी पढ़ाई भी जारी है। बीते साल उसकी शादी हुई, दो माह का बच्चा है। हियरिंग में पति भी रचना के साथ होते हैं। रचना ने कहा – जिस लड़के को मेरी मर्जी की फिक्र नहीं, उससे इसलिए शादी करूं कि उसने मेरा रेप किया है।
बच्चे को खुद पाल रहीं
15 वर्षीय पूजा (परिवर्तित नाम), भोपाल की एक बस्ती में रहती थी। उसके साथ दो बार गैंगरेप हुआ। गर्भवती होने पर गौरवी की मदद से केस हुआ। 16 साल की उम्र में साल 2017 में उसने बच्चे को जन्म दिया। उसने बच्चे को पालने का निर्णय लिया। वर्तमान में पूजा पढ़ाई और काम के साथ अपने बच्चे की परवरिश अकेले कर रही है। वहीं, केस अब भी चल रहा है, क्योंकि बच्चे का डीएनए गिरफ्तार आरोपियों से मैच नहीं हुआ। कुछ आरोपी फरार हैं। पूजा जॉब कर अपनी बेटी को बस्ती से दूर ले जाना चाहती है।
सपोर्ट जरूरी
विक्टिम बच्चियों को परिवार के सपोर्ट की सबसे अधिक जरूरत है। सपोर्ट दें और काउंसलिंग से उनका मनोबल बढ़ाएं। बच्चियों को फिजिकली और मेंटली स्ट्रांग बनाएं। बच्चियों को पढ़ाना जरूरी है, क्योंकि स्कूल जाने पर बच्चियां अपने मन की बात बता पाती हैं। -शिवानी सैनी, कोऑर्डिनेटर, गौरवी