
राजीव सोनी-भोपाल। केंद्र सरकार ने आयकर अधिनियम 1961 को सरल बनाने के लिए उसकी खामियां ढूंढने की जोर-शोर से कवायद शुरू कर दी है। आईटी एक्ट में बदलाव करने सीबीडीटी द्वारा गठित कमेटी को छह महीने का समय दिया गया है। समीक्षा के बाद गैर जरूरी धाराओं को चिन्हित कर उन्हें कम करने का प्रस्ताव है। भाषा को सरल बनाने के दावे किए भी किए जा रहे हैं।
करदाताओं की मुख्य शिकायत यह है कि उन्हें मिलने वाले विभागीय नोटिस और पत्रों की भाषा भी इतनी सरल नहीं रहती कि उन्हें आसानी से समझ में आ सके। नोटिस-पत्र समझने वकील अथवा सीए की मदद लेनी पड़ती है। आईटी एक्ट के जानकार, टैक्स प्रेक्टिसनर्स और सीए का कहना है कि कमेटी में स्टेक होल्डर्स, सीए व वकीलों का प्रतिनिधित्व भी रहना चाहिए।
वित्तमंत्री ने किया था ऐलान
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते समय इसका ऐलान भी किया था। सीबीडीटी प्रमुख रवि अग्रवाल ने भी एक्ट में सुधार के लिए स्पष्ट कर दिया है कि इंटरनल कमेटी उन अनावश्यक धाराओं को ढूंढ रही है जिन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
अदालती मामलों की समीक्षा से मिलेगा समाधान
टैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट के प्रकरणों का विश्लेषण किया जाना चाहिए। विभाग के खिलाफ करदाताओं के जो मामले चल रहे हैं , उनकी समीक्षा एक्ट की खामियां उजागर होंगी। इससे समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सकता है।
आईटी एक्ट की मौजूदा जटिलताएं
- धारा 271(ए), 271(बी) बुक्स ऑफ एकाउंट मेंटेन संबंधी।
- टैक्स स्लैब और न्यू रिजीम में हुए बदलाव।
- सॉफ्टवेयर में न्यू टैक्स रिजीम का अनावश्यक आग्रह।
- धाराओं में दो तरह के इंटरप्रिटेशन।
- टैक्स केलकुलेशन की जटिलता।
- री-ओपनिंग और एक्सपेंडिचर संबंधी मामले।
- आमदनी का हेड, अंडर और मिस रिपोर्टिंग।
टैक्स कानून की भाषा जन सामान्य की हो। आचार्य विनोबाजी के शब्दों में कहें तो टैक्स, आटे में नमक जैसा हो। पारदर्शिता के साथ टैक्स की समानता पर भी ध्यान दें। अभी कार्पोरेशन, फर्म, इंडीविजुअल, मेन- वूमेन जैसे वर्गीकरण करदाता को कनफ्यूज करते हैं। समीक्षा कमेटी में टैक्स बार, टैक्स पेयर्स एसो. के प्रतिनिधि भी रहें तो बेहतर होगा। इससे सही सुझाव सामने आएंगे। – आरके पालीवाल सेवानिवृत्त प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर