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स्क्रीन टाइम घटाने, पैरेंटिंग, लाइफ स्किल्स और डे- बोर्डिंग की जरूरत ने बढ़ाई प्री-स्कूलिंग की डिमांड

वर्किंग पैरेंट्स और एकल परिवार सवा दो साल के बच्चों को व्यस्त रखने के लिए भेज रहे प्री-स्कूल

प्रीति जैन- प्री-स्कूलिंग का ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है और कई बार पैरेंट्स दो साल तक के बच्चों को एडमिशन के लिए स्कूल लेकर आने लगे हैं। स्कूल्स पैरेंट्स की मांग पर सवा दो साल की उम्र में भी एडमिशन दे देते हैं। प्री-स्कूल में बच्चों को भेजने की जल्दी के पीछे कई कारण हैं, जिसमें से स्क्रीन टाइम से बच्चों को बचाने के अलावा, पियर लर्निंग देने का प्रयास है।

दरअसल, वर्किंग पैरेंट्स, सिंगल चाइल्ड और न्यूक्लियर फैमिली होने के कारण बच्चा घर में अकेला पड़ जाता है। बच्चों को अपने हम उम्र बच्चों का साथ मिल सके और वे लर्निंग-शेयरिंग सीख सकें इसलिए भी पैरेंट्स बच्चों को जल्दी स्कूल भेजना चाहते हैं। वहीं अब शहर के कुछ प्ले स्कूल डे बोर्डिंग की सुविधा भी दे रहे हैं, जिसमें पैंरेंट्स के ऑफिस जाने के बाद बच्चा स्कूल में सुबह 8 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक रहता है।

शहर में छोटे-बड़े लगभग 500 प्री-स्कूल हो रहे संचालित

शहर में प्री-स्कूल्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक एरिया में पांच से 10 तक प्री-स्कूल होते हैं। शहर में यूं तो छोटे-बड़े लगभग 500 प्री-स्कूल्स होंगे लेकिन स्तरीय प्री-स्कूल्स की संख्या 350 के आसपास है, जिसमें बच्चों को प्रॉपर डेवलपमेंट का मौका मिलता है। इन स्कूल्स में लर्निंग का तरीका अब बदला जा रहा है, किताबों की जगह बच्चों को रियल लाइफ चीजें दिखाकर पढ़ाया जा रहा है और सेंसरी डेवलपमेंट करने का प्रयास किया जा रहा है जो कि स्क्रीन टाइम के कारण मिसिंग हो रहा है। वहीं स्कूल्स में कई बार टीचर्स को ऐसे बच्चे भी मिलते हैं, जो कि तीन साल की उम्र तक भी बहुत कम बोलते हैं। पैरेंट्स से बात करने पर पता चलता है कि बोर होने के कारण बच्चा दिन भर मोबाइल देखता रहा है, जिसके कारण उसकी स्पीच प्रॉपर नहीं होती।

स्ट्रक्चरल और पियर लर्निंग हो पाती है संभव

जो बच्चे घर में पैरेंट्स के साथ अकेले रहते हैं, वो देर से बोलते हैं। दूसरा या तो वे स्क्रीन पर इतना ज्यादा रहते हैं कि वैसा बोलने की कोशिश करते हैं। स्कूल आकर बच्चों की पियर लर्निंग, स्किल डेवलपमेंट और स्ट्रक्चरल लर्निंग हो पाती है। पैरेंट्स- चाइल्ड एज गैप के कारण भी इंटरेक्शन कम हो गया है क्योंकि घर में ज्यादातर मेंबर बड़े ही होते हैं। फिजिकल फिटनेस के लिए प्री-स्कूल को चुना जा रहा है बच्चों को अपने हमउम्र बच्चे, झूले, एक्टिविटीज टॉयज से लेकर प्लेग्राउंड तक मिलता है। यह सभी कुछ घर में रहते हुए मिलना मुश्किल होता है और यदि मिल भी जाए तो बच्चा अकेले किसके साथ खेलेगा। बच्चों को आगे की स्कूलिंग, लाइफ स्किल्स और शेयरिंग सिखाने में पैरेंट्स को इससे मदद मिलती है। -फाएका सौलत खान, ट्रेलब्लेजर स्कूल

स्क्रीन टाइम से बड़ी समस्या अकेले पैरेंटिंग करने की है

मुझे लगता है कि स्क्रीन टाइम से ज्यादा बड़ी समस्या पैरेटिंग को लेकर है। स्कूल में बच्चे एक-दूसरे के साथ खुश रहते हैं। आर्ट एंड क्रॉफ्ट और नई-नई चीजें सीखते हैं। मैं पिछले 21 साल से प्री-स्कूल संचालित कर रही हूं इसलिए जानती हूं कि पैरेंट्स को इसकी वजह से काफी मदद मिलती है क्योंकि बच्चे अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारियां उठाना सीख जाते हैं क्योंकि बड़े स्कूल में एडमिशन होने पर उन्हें सीधे पढ़ाई करना होती है और वहां टीचर के पास समय नहीं होता कि वे उन्हें छोटी-छोटी बातें समझाए। -सीमा सक्सेना, विजन कृष्णा स्कूल

पैरेंट्स अकेले बच्चों को सब कुछ नहीं सिखा पाते

हम बच्चों को जब वेजिटेबल खिलौनों के रूप में दिखा देते हैं तो फिर उनकी पहचान करने के लिए स्कूल में ही सब्जी वाले को ठेले के साथ बुलाते हैं, ताकि बच्चे देखकर महसूस कर सकें। वर्किंग पैरेंट्स के पास सुबह का समय बच्चे को देने के लिए नहीं होता, इसलिए वे प्री-स्कूल को प्रिफर करते हैं क्योंकि बच्चा यहां वो बातें सीख पाता है जो कि पहले के समय में घर में सीखता था। -गीता छाबरा, प्रिंसिपल, एसवीएम, बागमुगलिया

पैरेंटिंग की उम्मीद अब प्री-स्कूल से की जा रही

डिसिप्लिन, एटीकेट्स, लाइफ स्किल्स बच्चे दूसरे बच्चों के साथ मिलकर सीख पाते हैं। स्कूल में ठीक से खाना खाते हैं, वरना घर में बच्चे कई बार बिना स्क्रीन देखे खाना ही नहीं खाते। अब पैरेंटिंग की उम्मीद पैरेंट्स स्कूल से रख रहे हैं। वे बच्चों को अकेला बड़ा करने में दिक्कत महूसस करते हैं इसलिए भी प्री-स्कूल्स की जिम्मेदारी बढ़ गई है। -डॉ. सुनीता सिंह, एजुकेशनिस्ट

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