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वोटर्स की सुस्ती टूटी, राजा-महाराजा और मामा की सीटों पर बढ़ गई वोटिंग

लोस चुनाव: संघ, दिग्गज नेताओं और आयोग के प्रयास सफल

भोपाल। मध्यप्रदेश में मंगलवार को हुए मतदान से सियासी दलों के दिग्गज, चुनाव आयोग सहित संघ ने राहत की सांस ली। पहले दो चरण में दिखी वोटर्स की उदासीनता से सत्ताधारी दल आशंकित हो उठा था। इसलिए सत्ता-संगठन के बड़े नेताओं ने पोलिंग बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी । इसका नतीजा यह रहा कि बैतूल जैसे अपवाद छोड़ ज्यादातर सीटों पर मतदान प्रतिशत 2019 के आसपास रहा। राजगढ़ और विदिशा ने पिछला रिकार्ड भी तोड़ दिया।

दोनों सीट पर क्रमश: पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह व शिवराज सिंह चौहान मैदान में हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र गुना का मतदान पिछले औसत के करीब रहा। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि सियासी दलों का कमिटेड वोटर्स घर से निकला लेकिन नए वोटर्स ने दिलचस्पी नहीं दिखाई।

9 लोकसभा क्षेत्रों में राजगढ़ सीट मतदान में अव्वल

गुना : हाईप्रोफाइल सीट पर बड़े-बड़े नेताओं ने मतदान बढ़ाने पूरी ताकत झोंक दी थी। आयोग से जो आंकड़े सामने आए हैं वे 2019 मतदान प्रतिशत के आसपास पहुंच गए।

राजगढ़: इस सीट पर पिछले चुनाव से ज्यादा मतदान को भाजपा और कांग्रेस दोनों ही नतीजा अपने पक्ष में रहने का दावा करने लगे हैं। आरएसएस ने इस सीट को जीतने के लिए मतदान प्रतिशत 80 फीसदी तक पहुंचाने का टारगेट रखा था।

ग्वालियर: यहां पोलिंग के पहले सत्ताधारी दल ज्यादा आशंकित था लेकिन जो आंकड़ा मिला उसके बाद उसने राहत की सांस ली। सागर में भी वोटिंग का आंकड़ा पिछले चुनाव के बराबर पहुंचता दिख रहा है।

विदिशा: भाजपा और संघ की पारंपरिक सीट भाजपा से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी से सुर्खियों में है। चौहान सहित कई दिग्गज नेता मतदाताओं की उदासीनता दूर करने में जुटे रहे। अंतत: यहां भी वोटिंग ने पिछला रिकार्ड तोड़ दिया।

भोपाल: यहां पोलिंग बढ़ाने के लिए सत्ता-संगठन ने पूरी ताकत लगा दी। पिछले चुनाव में राजधानी का मतदान 65 फीसदी से अधिक था। देर रात तक करीब 1 प्रतिशत की कमी बनी हुई थी।

बैतूल: आदिवासी बहुल बैतूल सीट पर वोटर्स की उदासीनता ने सभी को चौंकाया। यहां के लोगों ने मतदान को लेकर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। करीब 4 प्रतिशत का बड़ा फासला बना हुआ है।

भिंड: इस बार सबसे कम पोलिंग दर्ज हुई है। पिछले चुनाव में भी यहां का औसत मतदान 54 फीसदी ही था। पोलिंग नहीं बढ़ने के पीछे भीषण गर्मी के अलावा और भी कई कारण हैं।

मुरैना: मुरैना में जातीय और सियासी समीकरण साधने के लिए भाजपा-कांग्रेस के अलावा बसपा ने भी पूरा जोर लगाया है। इसके बावजूद मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव के बराबर नहीं पहुंचा।

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