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आशीष अग्रवाल-उमरिया। हम पीढ़ियों से यहां कोदो-कुटकी की फसल बोते आ रहे हैं। हाथियों के अलावा जंगल में रहने वाले हिरण, चीतल, बंदर आदि अन्य वन्यप्राणी भी पीढ़ियों से हमारी फसलों को खा रहे हैं। लेकिन इसके पहले कोदो की फसल खाने से न कोई जानवर मरा और न ही कोई इंसान। फिर भी वन विभाग ने फसल को जहरीला बताते हुए फसल उजाड़ दी ।' उक्त पीड़ा सुनाते हुए सलखनिया के किसान बोले कि हमें मुआवजा कौन देगा?
दरअसल बांधवगढ़ नेशनल पार्क में दस हाथियों की मौत का रहस्य अब भी बरकरार है। जिन किसानों की फसल उजड़ गई, वे अब मुआवजे के लिए दर-दर भटक रहे हैं पर उन्हें कोई संतुष्टिजनक जवाब नहीं मिल रहा है। उधर 2 नवंबर को दो लोगों को मौत के घाट उतारने वाले जंगली हाथी का रविवार को रेस्क्यू कर लिया गया।
खेतों में खड़ी फसल को हाथियों या जंगली जानवर द्वारा नुकसान पहुंचाया जाए तो पहले सरपंच से ग्रामीण की पहचान कराई जाती है। उसके बाद वनकर्मी और पटवारी मौके पर जाते हैं। नुकसान पर प्रति हेक्टेयर मुआवजा तय है लेकिन हाथी द्वारा खेत के कितने हिस्से (रकबे) पर फसल बर्बाद की गई, इसका आकलन पटवारी ही करता है। रिपोर्ट वन मंडल को दी जाती है। संबंधित वन रेंजर फाइल डीएफओ के पास भेजते हैं। इसके बाद क्षतिपूर्ति राशि मिलती है।
हमारा पूरा जीवन इसी गांव में बीता जा रहा है। तीन पीढ़ियों से हम लोग यहां रह रहे हैं, पर कभी ऐसा सुना न देखा गया कि कोदो खाने से किसी जानवर की मौत हुई है। यह झूठी बातें हैं। सारा इल्जाम हम गांव वालों पर लगाकर वन विभाग अपना पल्ला झाड़ रहा है। हमारी कोई गलती नहीं है। -कृपाल सिंह, किसान
एक महीने से हम लोग हाथी से बचाने की गुहार लगा रहे थे और अब जब एक-एक करके दस हाथियों की मौत हो गई तो सारा इल्जाम हमारे ऊपर डालकर वन विभाग के अधिकारी हमें फंसा रहे हैं। हमें न तो वन विभाग के बड़े अधिकारियों से और न ही मंत्री जी से मिलने दिया गया। -सुदामा सिंह, किसान
जिन किसानों के खेतों से कोदो- कुटकी की फसल हटाई गई है, उसका सर्वे राजस्व विभाग के माध्यम से कराया जा रहा है। किसानों की फसल नुकसान का मुआवजा दिया जाएगा। -वीएन अंबाड़े, पीसीसीएफ वन्यप्राणी
कोदो-कुटकी वहां बोने दी जाएगी या नहीं, यह वन विभाग का अधिकार क्षेत्र है। जहां तक मुआवजे की बात है तो यह भी वन विभाग का मामला है, उसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हूं। -डीके जैन, कलेक्टर, उमरिया