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सरकारी अस्पतालों में कराई जांच, शुगर 10 तो हीमोग्लोबिन 99999 बताया!

जांच की ‘फॉल्स रिपोर्ट्स’ पर डॉक्टरों ने ही उठाए सवाल, नई कंपनी को दिया गया है पैथोलॉजी जांच का ठेका

प्रवीण श्रीवास्तव-भोपाल। क्या किसी व्यक्ति में ब्लड शुगर कभी एक लाख तो कभी महज 10 एमजी हो सकती है? या किसी जीवित व्यक्ति के शरीर में थायराइड का स्तर भी 0.00 हो सकता है? अगर सरकारी अस्पतालों की जांच रिपोर्ट देखें तो इन सवालों का जवाब होगा हां। चौंकिए नहीं यह सच है। दरअसल, प्रदेश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध अस्पतालों में मरीजों को इसी तरह की रिपोर्ट दी जा रही हैं। यह हम नहीं, बल्कि अस्पतालों के डॉक्टर ही कह रहे हैं।

प्रदेश के कुछ मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों के डॉक्टरों ने चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर फॉल्स रिपोर्टिंग की शिकायत की है। इस पत्र में कहा गया है कि जांच कंपनी अपने फायदे के लिए गलत रिपोर्टिंग कर रही है। इन रिपोर्ट से मरीजों के इलाज में जानलेवा गलती हो सकती है। प्रदेश में करीब 3 माह पहले सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सेंट्रल पैथोलॉजी लैब का काम निजी कंपनी को सौंपा गया है। इससे पहले कॉलेज खुद ही यह सारी जांच करते थे। अब डॉक्टरों की शिकायत है कि भर्ती मरीजों की जो जांच रिपोर्ट आ रही हैं वे पूरी तरह से गलत हैं।

10 गुना बताया क्रिएटिनिन

शाहजहांनाबाद निवासी मोहम्मद अकरम (परिवर्तित नाम) को हमीदिया अस्पताल के डॉक्टर ने क्रिएटिनिन सीरम जांच की सलाह दी। रिपोर्ट में मरीज का सीरम क्रिएटिनिन स्तर 14.0 आया। रिपोर्ट देख डॉक्टरों को कुछ शक हुआ, क्योंकि इतने स्तर पर किडनी काम करना बंद कर देती। डॉक्टर ने उन्हें फिर से टेस्ट करने को कहा तो रिपोर्ट 1.4 आई। सामान्य अवस्था में क्रिएटिनिन स्तर 1.3 से 1.7 तक होता है।

प्राइवेट कंपनी को सौंपी जांच

पहले कॉलेजों के पैथोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री और माइक्रोबायलॉजी विभाग अपने स्तर पर ही 300 प्रकार की जांच करते थे। कॉलेजों में जांच के लिए जरूरी रिएजेंट की कमी हो गई और कई टेस्ट बंद हो गए। ऐसे में विभागीय अधिकारियों ने इस व्यवस्था को हटाकर पूरा काम निजी हाथों में सौंप दिया। इसके लिए कंपनी को प्रति टेस्ट भुगतान किया जा रहा है। हालांकि कंपनी 129 प्रकार के ही टेस्ट कर रही है।

एक टेस्ट के लिए दो बार पेमेंट

मेडिकल कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि कंपनी जानबूझ कर गलत रिपोर्ट दे रही है। गलत रिपोर्ट आने पर डॉक्टरों द्वारा अक्सर रिपीट टेस्ट कराए जाते हैं। कंपनी इन टेस्ट का पेमेंट भी वसूल लेती है। वह मरीजों व शासन को आर्थिक नुकसान पहुंचा रही है।

डॉक्टर्स ने लिखा संयुक्त पत्र; यह मुद्दे उठाए

1. कंपनी द्वारा बायोकेमेस्ट्री विभाग में ऑटोएनालाइजर मोड शुरू नहीं किया जा रहा है। इससे गलत रिपोर्ट आने पर स्वत: सुधार करने की बजाए दोबारा परीक्षण किए जाते हैं। एक ही परीक्षण के बार-बार शुल्क लिए जाते हैं।

2. कुछ जांच परिणाम जीवन के लिए अनुकूल नहीं हैं, जैसे सीरम के प्लस – 30, एएलपी -1.30 या टीएचएस -00। हमारे डॉक्टर ऐसी रिपोर्ट को कैसे प्रमाणिक कर सकते हैं? ऐसे परिणामों के लिए दोबारा शुल्क लेना सही नहीं है।

3. केएफटी प्रोफाइल से यूरिक एसिड, लिपिड प्रोफाइल से एलडीएच नहीं हटाया गया है, जिनकी आमतौर पर आवश्यकता नहीं होती।

4. प्लाज्मा ग्लूकोज के लिए फ्लोराइड बल्ब नहीं दिए गए । इसके नहीं होने से शुगर रिपोर्ट 10, 20 या 30 आ रही है। यह मात्रा जीवित व्यक्तियों में नहीं हो सकती।

5. अब तक जांच के सभी पैरामीटर शुरू नहीं हो सके हैं। जांच में अनुमान के सभी मानकों का पालन करें, ताकि मरीजों की जान जोखिम में न पड़े।

हमें भी गलत रिपोर्टिंग की शिकायत मिली है। जांच करा रहे हैं। जांच के आधार पर आवश्यक कदम उठाएंगे।– डॉ. एके श्रीवास्तव, संचालक, चिकित्सा शिक्षा

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