
लंदन। अक्सर माता-पिता की नींद में कमी और थकान को नकारात्मक रूप में देखा जाता है, लेकिन एक नए शोध में सामने आया है कि बच्चों की देखभाल में दिन-रात एक करने वाले माता-पिता या अभिभावकों के मानसिक बल में बड़ा इजाफा होता है। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध के अनुसार बच्चों की परवरिश से उम्र बढ़ने के साथ होने वाली मानसिक क्षमताओं में गिरावट को रोका जा सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यह शोध केवल जैविक माता-पिता पर ही लागू नहीं होता, बल्कि दत्तक बच्चों या बीमार बुजुर्गों की देखभाल करने वालों पर भी समान रूप से लागू होता है। अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि मानसिक स्वास्थ्य केवल देखभाल पर निर्भर नहीं करता, बल्कि इसमें व्यायाम, आहार, शिक्षा और सामाजिक संपर्क जैसे अन्य कारक भी अहम भूमिका निभाते हैं।
38 हजार लोगों के मस्तिष्क के स्कैन पर शोध
शोध में ब्रिटेन के यूके बायोबैंक के 38,000 वयस्कों के मस्तिष्क स्कैन का विश्लेषण किया गया, जिनकी आयु 40 से 70 वर्ष के बीच थी। शोध में सामने आया कि माता-पिता के मस्तिष्क के ऐसे क्षेत्र विशेष रूप से सक्रिय पाए गए, जो गति और संवेदना से जुड़े होते हैं। उनका दिमाग दूसरे लोगों की तुलना में बेहतर काम करता है।
बच्चों की परवरिश से होता है जीवन का विस्तार
- बच्चों की देखभाल करना केवल शारीरिक कार्य ही नहीं है, बल्कि इसमें संवेदी और संज्ञानात्मक (कॉग्नीटिव) जुड़ाव भी शामिल होता है। उदाहरण के लिए, बच्चे को गोद में लेना, झुलाना और खाना खिलाना जैसी गतिविधियां संवेदी प्रणाली को सक्रिय रखती हैं।
- बच्चों की भावनाओं को समझना, उनकी अप्रत्याशित हरकतों का सामना करना और समस्याओं का समाधान करना माता-पिता को मल्टीटास्किंग और तत्काल निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने में मदद करता है। ये सारी गतिविधियां मस्तिष्क को सक्रिय और तेज बनाए रखती हैं।
- बच्चों की परवरिश के दौरान माता-पिता के जीवन में भी विस्तार होता है। उन्हें सामाजिक रूप से बच्चों के शिक्षकों, डॉक्टरों और अन्य लोगों से जुड़ना पड़ता है।
- ये सामाजिक संपर्क भी मस्तिष्क के लिए फायदेमंद होते हैं, क्योंकि यह मानसिक उत्तेजना को बढ़ाता है। शारीरिक रूप से भी इसके लाभ देखे गए हैं।