
पटना। राम जन्मभूमि निर्माण ट्रस्ट के ट्रस्टी और बिहार के पूर्व MLC कामेश्वर चौपाल का 68 साल की उम्र में निधन हो गया। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। वे कई दिनों से बीमार चल रहे थे, उन्हें किडनी की बीमारी थी। उनकी बेटी ने किडनी डोनेट की थी, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। कामेश्वर चौपाल ने राम मंदिर निर्माण के लिए पहली ईंट रखी थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने उन्हें “प्रथम कार सेवक” का दर्जा दिया था। उनका पार्थिव शरीर पटना लाया जाएगा, अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव सुपौल के कमरैल में किया जाएगा।
कौन हैं कामेश्वर चौपाल
- कामेश्वर चौपाल का जन्म 24 अप्रैल 1956 को हुआ था। उन्होंने जेएन कॉलेज मधुबनी से स्नातक और मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा से एमए किया था।
- सुपौल (बिहार) के रहने वाले कामेश्वर चौपाल को 1989 में राम मंदिर के लिए पहली ‘राम शिला’ रखने का जिम्मा सौंपा गया।
- कामेश्वर चौपाल ने 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर के लिए नींव की पहली ‘राम शिला’ (ईंट) रखी थी। उस समय वह विश्व हिंदू परिषद (VHP) के स्वयंसेवक थे और राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
- 1991 में उन्होंने VHP छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) जॉइन की। बीजेपी ने उन्हें 1991 में रोसड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए।
- 1995 में उन्हें बेगूसराय की बखरी विधानसभा से टिकट मिला, लेकिन वहां भी हार का सामना किया।
- 2002 में उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया गया, जहां वह 2014 तक रहे।
- 2014 और 2024 में उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट मिला, लेकिन वह जीत नहीं पाए।
- 2020 में उनके नाम की चर्चा बिहार डिप्टी सीएम पद के लिए भी हुई थी।
राम मंदिर के लिए 100 सालों से लोग कर रहे थे संघर्ष
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और उद्घाटन किया गया। बिहार के कामेश्वर चौपाल (67) वह पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने राम मंदिर निर्माण की पहली ईंट रखी थी। राम मंदिर आंदोलन में उनकी अहम भूमिका रही। कामेश्वर चौपाल का कहना था कि, बाबर ने मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद इसलिए रखा क्योंकि वह अयोध्या के लोगों की भावनाओं से जुड़ना चाहता था। उनका कहना था कि, किसी भी मस्जिद का नाम किसी के निजी नाम पर नहीं होता, लेकिन यहां बाबर का नाम रखा गया। मस्जिद का नाम सिर्फ अल्लाह के नाम पर होना चाहिए।
सुपौल निवासी कामेश्वर चौपाल का कहना था कि, राम मंदिर बनने से पहले लगभग एक दशक तक आंदोलन चल चुका था। 100 सालों से लोग संघर्ष कर रहे थे, इस विश्वास और आशा के साथ कि राम की जन्मभूमि पर एक दिन भव्य मंदिर बनेगा। यह सत्य की लड़ाई थी और हमें यकीन था कि सत्य एक दिन जरूर सामने आएगा।
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