
नई दिल्ली। केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को करीब दो घंटे लंबी सुनवाई हुई। इस कानून के खिलाफ देशभर से 100 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इन याचिकाओं पर जवाब मांगा है, लेकिन फिलहाल कानून के क्रियान्वयन पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। मुख्य न्यायाधीश सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार (17 अप्रैल) दोपहर 2 बजे से की जाएगी।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन और सीयू सिंह जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कानून को असंवैधानिक बताया।
कोर्ट ने कानून के विरोध में हो रही देशभर की हिंसा पर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के विरोध में देशभर में हो रही हिंसा पर चिंता जताई। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि संविधान के तहत कानून की वैधता को चुनौती देना अधिकार है, लेकिन इसे हिंसक रूप नहीं दिया जाना चाहिए।
कैसे तय होगा कि मुसलमान कौन
कपिल सिब्बल ने सबसे पहले उस प्रावधान पर सवाल उठाया जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। उन्होंने कहा, “सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि कौन मुसलमान है और कौन नहीं? और केवल पिछले 5 सालों से इस्लाम मानने वालों को ही वक्फ बनाने का अधिकार क्यों?” इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुस्लिम मेंबर भी जोड़े जा सकते हैं, जो धार्मिक स्वायत्तता और अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है। पहले सभी सदस्य मुस्लिम होते थे, लेकिन अब 22 में से 10 ही मुस्लिम हैं।
इस पर जस्टिस पीवी संजय कुमार ने तिरुपति मंदिर बोर्ड का उदाहरण मांगते हुए पूछा, “क्या वहां भी गैर-हिंदू सदस्य हैं?”
14वीं-16वीं शताब्दी की संपत्तियों का क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि सैकड़ों साल पुरानी वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन कैसे किया जाएगा, जिनके पास कोई दस्तावेज या डीड नहीं है। CJI खन्ना ने सवाल उठाया, “14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिदों के पास कोई सेल डीड नहीं होगी। ऐसे में उन्हें रजिस्टर कैसे किया जाएगा?”
उन्होंने आगे कहा, “वक्फ बाई यूजर की परंपरा को मान्यता मिली हुई है। अगर इसे समाप्त किया गया, तो अनेक असली वक्फ संपत्तियां खारिज हो जाएंगी और इससे विवाद और गहरा सकता है।”
सरकार ने दुष्प्रचार का लगाया आरोप
केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता ने जवाब देते हुए कहा, “वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन पहले से अनिवार्य है। 1995 के कानून में भी यह प्रावधान मौजूद था। अब इसे लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है कि रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो मुतवल्ली को जेल होगी।”
उन्होंने कहा कि इसमें नया कुछ नहीं जो असंवैधानिक हो।
क्या मुसलमान हिंदू ट्रस्टों का हिस्सा बन सकते हैं
सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि क्या आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का सदस्य बनने की अनुमति देने को तैयार हैं?
यह सवाल समानता के अधिकार और धार्मिक हस्तक्षेप को लेकर उठाया गया। कोर्ट ने कहा, “हिंदू धर्म के दान कानून में बाहरी व्यक्ति ट्रस्ट का हिस्सा नहीं हो सकता, फिर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम कैसे जोड़े जा सकते हैं?”
अदालत के बजाय सरकारी अफसर करेगा जांच
कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताई कि विवाद की स्थिति में सरकारी अफसर जांच करेगा, जो संविधान और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “ऐसा अधिकारी सरकार का प्रतिनिधि होगा, न्यायिक संस्था नहीं। संपत्ति के मालिकाना हक का फैसला अदालत को करना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार दोपहर 2 बजे फिर से इस मामले की सुनवाई तय की है।