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बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सभी पर्सनल लॉ पर होगा लागू, कहा- यह जीवनसाथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 अक्टूबर) को बाल विवाह से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में अहम फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए कानूनों के साथ-साथ जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल सजा के प्रावधान पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि सामाजिक स्तर पर मानसिकता बदलने के प्रयास जरूरी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर गाइडलाइन जारी करते हुए कहा कि बाल विवाह, उनके जीवनसीथी चयन के अधिकार का उल्लंघन है।

बाल विवाह कानून प्रभावी बनाने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 के उद्देश्यों पर विस्तार से चर्चा की। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि “इस कानून में बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, लेकिन यह प्रभावी साबित नहीं हुआ।” बेंच ने कहा कि कानून के प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है, ताकि समाज की मानसिकता बदल सके।

एनजीओ ने दायर की थी याचिका

यह मामला 2017 में सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन नामक एनजीओ द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है। एनजीओ ने आरोप लगाया गया था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम का सही ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद 10 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सभी समुदायों में समान रूप से लागू होगा कानून

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 सभी व्यक्तिगत और धार्मिक कानूनों पर लागू होगा, ताकि हर समुदाय में इसे समान रूप से लागू किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह से बच्चों के अपने जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है और यह उनके भविष्य को काफी प्रभावित करता है।

समाज में जागरूकता बढ़ाने की अपील

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह समाज की नैतिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है। यह फैसला उन सभी प्रयासों के लिए कारगर साबित होगी, जो बच्चों के अधिकारों और उनकी भलाई के लिए काम कर रहे हैं।

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