
इंदौर। कई मजदूरों के बलिदान और 32 सालों के संघर्ष के बाद हुकुमचंद मिल मजदूरों ने उस लड़ाई को जीत लिया है, जिसके लिए वे संघर्ष कर रहे थे। इंदौर हाईकोर्ट खंडपीठ ने शुक्रवार को मिल मजदूरों के चेहरों पर वो खुशियां ला दी हैं, जिसकी वह उम्मीद छोड़ चुके थे। इंदौर हाईकोर्ट ने हुकुमचंद मिल मजदूरों के बकाया राशि से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए हाउसिंग बोर्ड को तीन दिन के भीतर पूरी राशि श्रमिकों के खाते में जमा करने का आदेश जारी किया है। यह राशि 425 करोड़ रुपए है। मजदूर यूनियन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गिरिश पटवर्धन और धीरज सिंह पंवार ने बताया कि इंदौर हाईकोर्ट खंडपीठ की एकल पीठ न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की कोर्ट में मजदूरों की बकाया राशि से जुड़े मामले को लेकर शुक्रवार को सुनवाई हुई।
निर्वाचन आयोग के मजदूरों को भुगतान के लिए अनापत्ति पत्र जारी करने के बाद कोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड को 3 दिन के भीतर पूरी राशि श्रमिकों के खाते में जमा के आदेश जारी किए हैं। सरकार को 425 करोड़ रुपए जमा करने होंगे। इनमें मजदूरों के ब्याज सहित 218 करोड़ रुपए भी हैं। यह राशि तीन दिन में एसबीआई में खाता खोलकर जमा करनी होगी।
1991 से शुरू हुई लड़ाई
हुकमचंद मिल के 5,895 मजदूर 12 दिसंबर 1991 को मिल बंद होने के बाद से अपने हक के लिए भटक रहे थे। करीब 16 वर्ष पहले हाईकोर्ट ने मजदूरों के पक्ष में 229 करोड़ मुआवजा तय किया था।
भूल नहीं सकते संघर्ष, अब आएगी सुकून की नींद
मजदूर कर्मचारी अधिकारी समिति के अध्यक्ष नरेन्द्र श्रीवंश ने बताया कि 32 साल के संघर्ष के बाद न्याय मिला। हालांकि, देर से मिला न्याय, न्याय नहीं अन्याय है। खैर, अब सुकून की नींद आएगी। उन्होंने बताया कि आज भी वह रात नहीं भूलते, कैसे रात 2-2 बजे तक पत्नी सुनीता लोगों के कपड़े सिलती थी। केस के चलते कोर्ट में अटैक भी आ चुका है।