
दिवाली के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचे। बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के बाद वे 2013 में यहां आई भीषण तबाही को याद कर भावुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘बरसों पहले जो नुकसान यहां हुआ था, वो अकल्पनीय था। मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और अपने आप को रोक नहीं पाया था। मैं यहां दौड़ा चला आया था। मैंने अपनी आंखों से उस तबाही को देखा था, उस दर्द को सहा था। जो लोग यहां आते थे, वो सोचते थे कि क्या ये हमारा केदार धाम फिर से उठ खड़ा होगा?
केदारनाथ का विकास ईश्वर की कृपा
मोदी ने अपने संबोधन में आगे कहा, लोग सोचते थे कि केदारधाम फिर वैसा नहीं हो सकेगा। लेकिन मेरे भीतर की आवाज कह रही थी की ये पहले से अधिक आन-बान-शान के साथ खड़ा होगा। यह विकास कार्य ईश्वर की कृपा से हुआ।’ उन्होंने आगे कहा कि अगला दशक अब उत्तराखंड का है। यहां का पर्यटन अब काफी बढ़ने वाला है।
बरसों पहले जो नुकसान यहां हुआ था, वो अकल्पनीय था।
जो लोग यहां आते थे, वो सोचते थे कि क्या ये हमारा केदार धाम फिर से उठ खड़ा होगा?
लेकिन मेरे भीतर की आवाज कह रही थी की ये पहले से अधिक आन-बान-शान के साथ खड़ा होगा: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 5, 2021
आदि गुरु शंकराचार्य सबके लिए प्रेरणा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश अपने पुनर्निर्माण के लिए नए संकल्प ले रहा है। इस कड़ी में हम आदि गुरु शंकराचार्य को एक नई प्रेरणा के तौर पर देख सकते हैं क्योंकि देश अपने लिए बड़े लक्ष्य तैयार कर रहा है। हमने इसकी समयसीमा भी तैयार की है। तो लोग इस पर सवाल उठाते हैं कि ये जो तय किया है, यह हो भी पाएगा कि नहीं…तब मेरे मुंह से यही निकलता है कि समय के दायरे में बंधकर भयभीत होना अब भारत को मंजूर नहीं है।’
शंकर का संस्कृत में अर्थ है- “शं करोति सः शंकरः”
यानी, जो कल्याण करे, वही शंकर है।
इस व्याकरण को भी आचार्य शंकर ने प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिया।
उनका पूरा जीवन जितना असाधारण था, उतना ही वो जन-साधारण के कल्याण के लिए समर्पित थे: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) November 5, 2021
तीर्थस्थलों की यात्रा, सिर्फ सैर-सपाटा नहीं
मोदी ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि आज के दौर में आदि शंकराचार्य का सिद्धांत और ज्यादा प्रासंगिक हो गया है। हमारे यहां तीर्थस्थलों की यात्रा, तीर्थाटन को जीवनकाल का हिस्सा माना गया है। यह हमारे लिए सिर्फ सैर-सपाटा नहीं है। यह भारत का दर्शन कराने वाली जीवंत परंपरा है। हमारे यहां व्यक्ति की इच्छा होती है कि जीवन में एक बार चारधाम यात्रा जरूर कर लें, गंगा में एक बार डुबकी लगा लें।’