
अशोक गौतम-भोपाल। सरकार को टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार रखने के लिए मप्र में टाइगर रिजर्व की संख्या बढ़ाने पर फोकस करना होगा। वन्यप्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी मुख्य वजह प्रदेश में टेरिटोरियल फाइट के चलते बाघों की मौतें ज्यादा हो होना है। टाइगर कॉरिडोर को भी मजबूत करना होगा, जिससे बाघ एक पार्क से दूसरे पार्क तक पहुंच सके। हालांकि प्रदेश में रातापानी, नौरादेही और ओंकारेश्वर को टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव पाइपलाइन में हैं।
टाइगर कॉरिडोर कमजोर होने से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की डेंसिटी सबसे ज्यादा हैं। इसी के चलते यहां टेरिटोरियल फाइट से बाघों की सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। यहां पिछले सात माह के अंदर 10 बाघों की मौतें हो चुकी है। जबकि पूरे प्रदेश में जनवरी से अब तक 27 बाघों की मौत हो चुकी है, जो देश में सर्वाधिक हैं। टाइगर रिजर्व में बाघों की डेंसिटी बराबर करने के लिए टाइगर कॉरिडोर है, लेकिन कॉरिडोर खेतों और मैदान में बदलने के चलते बाघ ‘टाइगर रिजर्व’ में ही सिमट रहे हैं। यही कारण है कि अब तक जितने बाघों की मौतें हुईं उनमें 80 फीसदी पार्क के अंदर हुई हैं।
मप्र में सबसे ज्यादा बाघ
राष्ट्रीय बाघ गणना परिणाम 2022 के अनुसार मप्र में सर्वाधिक 785 बाघ हैं। कर्नाटक दूसरे नंबर पर है, जहां 563 बाघ हैं। लेकिन कर्नाटक में इस वर्ष अबतक 11 बाघों की मौतें हुई हैं।
16 रीजनल रेस्क्यू स्क्वाड
मानव और वन्य प्राणी संघर्ष के प्रभावी प्रबंधन के लिए 16 रीजनल रेस्क्यू स्क्वाड और हर जिले में जिला स्तरीय रेस्क्यू स्क्वाड बनाए गए। वन्य प्राणी अपराधों की जांच के लिए वन्य प्राणी अपराध की खोज में विशेषज्ञ 16 श्वान दलों का गठन किया गया। अनाथ बाघ शावकों की रिवाल्विंग की गई है।
टाइगर रिजर्व के चैलेंज
- कान्हा- यहां शावकों की सतत मानीटरिंग होनी चाहिए। यहां टाइगर नहीं बढ़ रहे हैं। शाकाहारी वन्य जीवों के लिए चारागाह की बेहतर व्यवस्था हो तो टाइगर बढ़ेंगे।
- पन्ना- यहां लैंडस्केप बेहतर है, लेकिन जिस तरह से शुरुआत में बाघों की संख्या बढ़ी, वैसी अब नहीं बढ़ रही है।
- पेंच- यहां ज्यादातर टाइगर कॉरिडोर मिलते हैं, ये सेंट्रली लोकेटेड हैं। सतपुड़ा, कान्हा, मेलघाट और रातापानी यहीं से जुड़ते हैं।
प्रदेश के 40 फीसदी टाइगर पार्क के बाहर
गणना रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 40%बाघ पार्क और टाइगर रिजर्व के बाहर हैं। यह भी बड़ी चिंता का विषय है। दरअसल, इससे राज्य सरकार को इन क्षेत्रों में बाघों के हिसाब से देखरेख करने की जरूरत है, जिससे बाघ ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं आएं। इससे मानव और बाघ के बीच होने वाले द्वंद्व को रोका जा सकेगा। पार्क में जब बाघों की संख्या बढ़ेगी तो उसका प्रेशर पार्क के बाहर देखने को मिलेगा।
टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार रखना है तो टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क, सेंचुरी की संख्या बढ़ाना और उसे सुदृढ़ करना पड़ेगा। इसके साथ शाकाहारी वन्य जीव के लिए चारागाह की भी व्यवस्था करना पड़ेगा। वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट पर भी राज्य सरकार को फोकस करना पड़ेगा। -जेएस चौहान, सेवानिवृत्त वाइल्ड लाइफ चीफ तथा एक्सपर्ट