
झारखंड स्थित जैनियों के तीर्थस्थल सम्मेद शिखर को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। सम्मेद शिखर अब पर्यटन क्षेत्र नहीं होगा। केंद्र सरकार ने गुरुवार को अपना आदेश वापस ले लिया है। इसके साथ ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी नोटिफिकेशन में सभी पर्यटन और इको टूरिज्म एक्टिविटी पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं।
केंद्र सरकार ने निगरानी कमेटी बनाई
केंद्र सरकार ने एक निगरानी समिति बनाई है जो इको सेंसेटिव जोन की निगरानी करेगी। इसके साथ ही राज्य सरकार को केंद्र सरकार ने निर्देश दिया है कि इस समिति में जैन समुदाय के दो और स्थानीय जनजातीय समुदाय के एक सदस्य को स्थायी रूप से शामिल किया जाए।
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने दिल्ली में जैन समाज के प्रतिनिधियों के साथ आज बैठक की। इस दौरान उन्होंने जैन समाज को आश्वासन दिया गया है कि पीएम मोदी जी की सरकार सम्मेद शिखर सहित सभी धार्मिक स्थलों पर जैन समुदाय के अधिकारों की रक्षा और संरक्षण के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
Sammed Shikhar falls in the eco-sensitive zone of Parasnath Wildlife Sanctuary and Topchanchi Wildlife Sanctuary.
There is a list of prohibited activities that can't take place in and around the designated eco-sensitive area. Restrictions will be followed in letter and spirit. pic.twitter.com/rpJ7tpWhnD
— Bhupender Yadav (@byadavbjp) January 5, 2023
क्या है पूरा मामला ?
झारखंड राज्य के गिरिडीह में स्थित तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी जैन धर्म के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। सम्मेद शिखरजी को पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है। पारसनाथ पर्वत गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है। सम्मेद शिखरजी में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। साथ ही असंख्य महामुनिराजों ने इसी पवित्र भूमि से तपस्या कर निर्वाण प्राप्त किया है। यहीं 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था। सरकार के इस फैसले का देशभर में जैन समाज द्वारा जमकर विरोध भी हुआ।
क्यों खास है ये तीर्थ स्थान ?
झारखंड राज्य के गिरिडीह में स्थित तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी जैन धर्म के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। सम्मेद शिखरजी को पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है। पारसनाथ पर्वत गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है। सम्मेद शिखरजी में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। साथ ही असंख्य महामुनिराजों ने इसी पवित्र भूमि से तपस्या कर निर्वाण प्राप्त किया है। यहीं 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए यह सिद्धक्षेत्र भी कहते हैं। ये तीर्थ ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रखता है।
सम्मेद शिखरजी की क्या है मान्यता ?
सम्मेद शिखरजी तीर्थ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। जैन धर्म में मान्यता है कि इनकी वंदना करने से सभी पाप का नाश हो जाता है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, सृष्टि के आरंभ से ही सम्मेद शिखर और अयोध्या तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसलिए इन्हें अमर तीर्थ की संज्ञा दी गई है।
मान्यता है कि सम्मेद शिखरजी के इस क्षेत्र का कण-कण पवित्र है। यहां अनेक जैन मुनियों ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया है। वहीं मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति जीवन में एक बार सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा कर लेता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैन समाज के लोग सम्मेद शिखरजी पहुंचकर इसकी परिधि में फैले मंदिर-मंदिर जाते हैं और वंदना करते हैं।
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