राष्ट्रीय

सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने का विरोध, दिल्ली-मुंबई में सड़कों पर जैन समाज

झारखंड में स्थित जैन तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी को राज्य सरकार द्वारा पर्यटन स्थल घोषित करने का विरोध बढ़ता जा रहा है। दिल्ली समेत देश के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहा है और फैसले को वापस लेने की मांग की जा रही है। इस बीच गुजरात के पलीताणा में जैन मंदिर में भी तोड़फोड़ हुई थी, इन दोनों मामलों को लेकर मुंबई, अहमदाबाद और दिल्ली के इंडिया गेट पर जैन समाज के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों ने कही ये बात

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि, वो झारखंड सरकार के सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित करने के फैसले के खिलाफ राष्ट्रपति भवन में ज्ञापन देंगे। यह जैन समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला फैसला है। इससे सम्मेद शिखर को नुकसान होगा।

महाराष्ट्र में जैन समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे।

गुजरात के जैन मंदिर में तोड़फोड़

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रविवार को गुजरात के भावनगर जिले अंतर्गत पालीताना में शत्रुंजय पहाड़ी पर लगे बोर्ड और लोहे के खंभे को क्षतिग्रस्त किया गया था। घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया है। इसके बाद से दो समुदायों, सेठ आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट और नीलकंठ महादेव सेवा समिति के बीच तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है।

क्या है पूरा मामला ?

झारखंड राज्य के गिरिडीह में स्थित तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी जैन धर्म के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। सम्मेद शिखरजी को पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है। पारसनाथ पर्वत गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है। सम्मेद शिखरजी में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। साथ ही असंख्य महामुनिराजों ने इसी पवित्र भूमि से तपस्या कर निर्वाण प्राप्त किया है। यहीं 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। झारखंड सरकार ने इसे पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है। सरकार के इस फैसले का देशभर में जैन समाज विरोध कर रहा है।

क्यों खास है ये तीर्थ स्थान ?

झारखंड राज्य के गिरिडीह में स्थित तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी जैन धर्म के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। सम्मेद शिखरजी को पारसनाथ पर्वत भी कहा जाता है। पारसनाथ पर्वत गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है। सम्मेद शिखरजी में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। साथ ही असंख्य महामुनिराजों ने इसी पवित्र भूमि से तपस्या कर निर्वाण प्राप्त किया है। यहीं 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए यह सिद्धक्षेत्र भी कहते हैं। ये तीर्थ ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रखता है।

सम्मेद शिखरजी की क्या है मान्यता ?

सम्मेद शिखरजी तीर्थ ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। जैन धर्म में मान्यता है कि इनकी वंदना करने से सभी पाप का नाश हो जाता है। जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, सृष्टि के आरंभ से ही सम्मेद शिखर और अयोध्या तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसलिए इन्हें अमर तीर्थ की संज्ञा दी गई है।

मान्यता है कि सम्मेद शिखरजी के इस क्षेत्र का कण-कण पवित्र है। यहां अनेक जैन मुनियों ने तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया है। वहीं मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति जीवन में एक बार सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा कर लेता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैन समाज के लोग सम्मेद शिखरजी पहुंचकर इसकी परिधि में फैले मंदिर-मंदिर जाते हैं और वंदना करते हैं।

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