इस साल देव उठनी एकादशी और तुलसी विवाह का पर्व कुछ जगहों पर 14 नवंबर को मनाया गया, तो कुछ जगहों पर 15 नवंबर को मनाया जा रहा है। देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और इस दिन से ही मांगलिक कार्यों की भी शुरुआत हो जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह भी तुलसी के साथ कराया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं खत्म हो जाती हैं और घर में सुख, शांति और खुशहाली आती है।
तुलसी-शालिग्राम विवाह का महत्व
कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियां एकादशी को भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम एवं विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह संपन्न करवाती हैं। शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। इसके अलावा तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराने वाले भक्तों को अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इससे वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है।
माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से कन्या दान के समान पुण्य प्राप्त होता है। यदि आपने आज तक कन्यादान नहीं किया हो, तो तुलसी विवाह करके आप इस पुण्य को अर्जित कर सकते हैं।

तुलसी विवाह कथा
तुलसी और शालिग्राम के विवाह से जुड़ी कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताई गई है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में तुलसी जिनका एक नाम वृंदा है, शंखचूड़ नाम के असुर की पत्नी थी। शंखचूड़ दुराचारी और अधर्मी था। देवता और मनुष्य सभी इस असुर से त्रस्त थे। तुलसी के सतीत्व के कारण सभी देवता मिलकर भी शंखचूड़ का वध नहीं कर पा रहे थे। सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु और शिवजी के पास पहुंचे और उनसे दैत्य को मारने का उपाय पूछा। उस समय भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण करके तुलसी का सतीत्व भंग कर दिया। जिससे शंखचूड़ की शक्ति खत्म हो गई और शिवजी ने उसका वध कर दिया। बाद में जब तुलसी को ये बात पता चली तो उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। विष्णुजी ने तुलसी के श्राप को स्वीकार किया और कहा कि तुम पृथ्वी पर पौधे और नदी के रूप में रहोगी और तुम्हारी पूजा भी की जाएगी। मेरे भक्त तुम्हारा और मेरा विवाह करवाकर पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। उस दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी का दिन था। तुलसी नेपाल की गंडकी और पौधे के रूप में आज भी धरती पर हैं। गंडकी नदी में ही शालिग्राम मिलते हैं।

तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त
शाम 5:15 से 6:50 तक
तुलसी विवाह पूजन विधि
- तुलसी के गमले सजाएं।
- इसके चारों-ओर गन्ने का मंडप बनाकर उस पर लाल चुनरी ओढ़ाएं।
- गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी माता को चूड़ी आदि पहनाकर श्रृंगार करें।
- भगवान श्रीगणेश सहित भगवान शालिग्राम और तुलसी माता की पूजा करें।
- भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा करवाएं।
- धूप-दीप के बाद आरती करें।