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यह पिंग-पांग का खेल कब खत्म होगा! जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल

नई दिल्ली। सु्प्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है। इसके खिलाफ टिप्पणी करना ठीक नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी के लिए ‘बाध्यकारी’ है। देश में कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए।

लोगाें की टिप्पणियों को उचित नहीं मान सकते

सुप्रीम कोर्ट उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को मंजूर करने में केंद्र सरकार द्वारा की जा रही देरी से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहा है। जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम पर सरकार के लोगों की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को उचित नहीं माना जा सकता। उन्होंने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि हमें अपेक्षा है कि इस बारे में सरकार को राय दें, ताकि अदालत द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का पालन हो। कॉलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय रही है। न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीशों द्वारा ही किए जाने वाली इस प्रणाली की तमाम लोग आलोचना करते रहे हैं। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने 25 नवंबर को कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के प्रति ‘सर्वथा अपरिचित’ शब्दावली है।

दूसरा कानून लाना है तो लाएं, हम रोक नहीं रहे

मामले की सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस एएस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ भी शामिल थे। बेंच ने कहा- कॉलेजियम ने जिन 19 नामों की सिफारिश की थी, उन्हें सरकार ने हाल में वापस भेज दिया। यह पिंग-पांग’ का खेल कैसे खत्म होगा? जब तक कॉलेजियम प्रणाली है, जब तक यह कायम है। हमें इसे लागू करना होगा। आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं, कोई आपको दूसरा कानून लाने से नहीं रोक रहा।

नामों को मंजूरी न देने पर नाराजगी

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर समाज का एक वर्ग तय करना शुरू कर देगा कि किस कानून का पालन होगा और किस का नहीं तो अवरोध की स्थिति बन जाएगी। जस्टिस कौल ने कहा- कानून बनाने का काम संसद का है। हालांकि, यह अदालतों की पड़ताल पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा- इस अदालत द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए बाध्यकारी है। अदालत को इस बात से परेशानी है कि कई नाम महीनों और सालों से लंबित हैं, जिनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है। कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट का कॉलेजियम नाम भेजता है और सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम नामों को मंजूरी देता है तो वरिष्ठता समेत कई चीजों का ध्यान रखा जाता है। मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी।

क्या है मामला :

सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर को हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश वाले नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी पर नाराजगी जताई थी। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की थी। उस समय-सीमा का पालन करना होगा। ऐसा लगता है कि सरकार इस तथ्य से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को मंजूरी नहीं मिली, लेकिन यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती है।

2015 में रद्द SC ने रद्द किया था NJAC

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था। इससे सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली न्यायाधीशों की कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी। इसके बाद 11 नवंबर को शीर्ष अदालत ने न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी पर नाखुशी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि नामों को पेंडिंग रखना ‘स्वीकार्य नहीं है।’ पीठ ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के सचिव (न्याय) और अतिरिक्त सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को नोटिस जारी कर याचिका पर उनका जवाब मांगा था।

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