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ग्लेशियर के कारण बढ़ा सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र का आकार

इसरो ने अपनी रिपोर्ट में किया दावा- आ सकती है मुसीबत

नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि हिमालय की बर्फीली झीलों के कारण खतरा बढ़ सकता है। बता दें, भारी संख्या और मात्रा में ग्लेशियरों की मौजूदगी और ढेर सारी बर्फ के कारण हिमालय के पहाड़ों को दुनिया तीसरा ध्रुव कहा जाता है, लेकिन अब यह इलाका ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बहुत ज्यादा प्रभावित हो रहा है। बर्फ पिघल रही है, ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं और झीलों का आकार बढ़ रहा है, इसका असर सामाजिक तौर पर भी पड़ता है।

इसरो सैटेलाइट्स के जरिए नई बनने वाली झीलों पर और साथ ही पुरानी झीलों के बढ़ते हुए आकार पर नजर रखता है, ताकि खतरनाक ग्लेशियल लेक्स के फूटने से पहले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सके या इससे बचाव का कोई रास्ता निकाला जा सके। भारत के पास हिमालय पर मौजूद बर्फीली झीलों का 3-4 दशक का डेटा है। इसरो की रिपोर्ट के मुताबिक 676 झीलों में से 601 के आकार में दो बार से ज्यादा फैलाव हुआ है, जबकि 10 झीलें डेढ़ से दोगुना बढ़ी हैं। वहीं 65 झीलें हैं, जो डेढ़ गुना बढ़ी हैं। अगर इन झीलों की ऊंचाई की बात करें तो 314 झीलें 4 से 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर हैं, जबकि 296 ग्लेशियल लेक्स 5 हजार मीटर से ऊपर हैं।

इसी कारण हुए थे केदारनाथ जैसे हादसे

इन ग्लेशियल लेक्स से ग्लेशियल लेक्स आउटबर्स्ट फ्लड्स का खतरा रहता है। जैसे केदारनाथ, चमोली और सिक्किम में हादसे हुए। इससे निचले इलाकों में रहने वालों पर फ्लैश फ्लड और भूस्खलन का खतरा रहता है। ग्लेशियल लेक्स तब फूटती है, जब इनमें कोई भारी चीज गिर जाए या फिर पानी की मात्रा बढ़ने पर इनकी दीवार टूट जाए।

इसरों ने सभी झीलों को बांटा चार भागों में

इसरो ने इन झीलों को चार अलग-अलग कैटेगरी में बांटा है। मोरेन डैम्ड यानी पानी के चारों तरफ मलबे की दीवार। आइस डैम्ड यानी पानी के चारों तरफ बर्फ की दीवार। इरोजन यानी मिट्टी कटने की वजह से बने गड्ढे में जमा ग्लेशियर का पानी और अन्य ग्लेशियल झीलें। इन 676 झीलों में से 307 मोरेन डैम्ड, 265 इरोजन और 8 आइस डैम्ड ग्लेशियल लेक्स हैं।

हिमाचल की झील का आकार 178 फीसदी बढ़ा

इसरो की रिपोर्ट के अनुसार सिंधु नदी के ऊपर बने घेपांग घाट ग्लेशियल लेक की ऊंचाई 4068 मीटर है। यह हिमाचल प्रदेश में है। इसके आकार में 178 फीसदी का इजाफा हुआ है यानी यह पहले 36.40 हेक्टेयर में थी, जो अब बढ़कर 101.30 हेक्टेयर हो चुकी है। यह हर साल 1.96 हेक्टेयर के हिसाब से बढ़ी है।

यूं बनती हैं ग्लेशियल लेक्स

  • ग्लेशियरों के सिकुड़ने का मतलब है बर्फ का तेजी से पिघलना यानी पहाड़ों पर जहां भी यहां से बहने वाला पानी जमा होता है, वहां पर ग्लेशियल लेक्स बन जाती हैं।
  • पानी जुड़ने से हिमालय में पुरानी ग्लेशियल लेक्स का आकार भी बढ़ जाता है। ये ग्लेशियर और बर्फ भारत की नदियों का स्रोत हैं, लेकिन ये बर्फीली झीलें खतरनाक साबित हो सकती हैं।

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