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मिडघाट रेल लाइन से रेस्क्यू कर लाए गए दूसरे बाघ शावक की भी मौत, एक शावक की कल हुई थी मौत

भोपाल मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में दो सप्ताह पहले ट्रेन की चपेट में आने से चोटिल हुए एक बाघ शावक की भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में इलाज के दौरान मौत हो गई। वन विहार राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारी ने बताया कि शावक की मंगलवार को मौत हो गई, क्योंकि बचाव के बाद से ही वह खाना नहीं खा रहा था। यह शावक उन दो घायल शावकों में से था, जिन्हें 17 जुलाई को पश्चिम मध्य रेलवे (डब्ल्यूसीआर) की एक ही डिब्बे वाले विशेष एसी ट्रेन के मार्फत सीहोर जिले के बुधनी के पास मिडघाट सेक्शन से भोपाल लाया गया था।

अधिकारियों के अनुसार, मृत बाघ शावक का पोस्टमार्टम किया गया और अब उसका वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के दिशा-निर्देशों के अनुसार दाह संस्कार किया जाएगा।

एक डिब्बे की स्पेशल ट्रेन चलाई गई

वन अधिकारियों ने सोमवार को ही रेल प्रबंधन से बात की। इसके बाद मंगलवार को बुधनी स्टेशन पर एक एसी कोच वाली स्पेशल रेस्क्यू ट्रेन पहुंची। इस दौरान इस रूट पर ट्रैफिक रोककर दूसरे ट्रैक से बाकी ट्रेनों को निकाला गया। यहां डॉ. अतुल गुप्ता की टीम दोनों घायल शावकों पर जाल डालकर सावधानी से उठाकर स्ट्रेचर पर रखकर ट्रेन तक लाए। ट्रेन में लाते ही दोनों शावकों का परीक्षण करके दवाएं दी गईं। यह ट्रेन शाम 5 बजे रानी कमलापति स्टेशन पहुंची, जहां पहले से तैयार एंबुलेंस के जरिए दोनों को वन विहार पहुंचाया गया।

जान बचाकर टीम को भागना पड़ा था

सोमवार (15 जुलाई) को रेस्क्यू का प्रयास नाकाम होने के बारे में टीम का हिस्सा रहे एक अधिकारी ने बताया कि सूचना मिलते ही वनविहार भोपाल से मेडिकल टीम और सीहोर जिले का वन अमला मौके पर रवाना हुआ था। मेर रोड से उतरकर ये टीमें दो किमी पैदल चलकर घटनास्थल पर पहुंचे। यहां बाघ शावकों का ढंग से निरीक्षण भी नहीं हो सका कि रेलवे ट्रैक के दूसरी ओर शावकों की मां की दहाड़ सुनाई दी। मां बाघिन अपने बच्चों के एक्सीडेंट के कारण बार दर्द से कराहने से बिफरी हुई थी। इसके बाद उनके पास भीड़ देखकर गुर्राते हुए रेस्क्यू टीम की ओर बढ़ी। ऐसे में टीम में खौफ फैल गया, क्योंकि इस हालात के बारे में पहले सोचा तक नहीं गया था। सामने गुस्साई बाघिन को देख पूरी टीम ने बचाव के लिए शोर मचाना शुरु कर दिया और पीछे हटने लगे। शावकों से दूर जाती टीम को देख बाघिन थोड़ा ठिठकी, लेकिन घात लगाते हुए फिर बढ़ने लगी। इसके बाद डर से कांप रही पूरी टीम किसी तरह वहां से भागते हुए पीछे हटी और बिना रेस्क्यू ही लौट आई थी।

फेंसिंग न होने से जान गंवा रहे जंगली जानवर

मिडघाट पर तीसरी रेलवे लाइन का काम शुरू होते ही वन्य प्राणियों की सुरक्षा का मुद्दा उठा था। उस समय रेलवे ने वन विभाग को वादा किया गया था कि ट्रैक के दोनों ओर फेंसिंग की जाएगी। इससे टाइगर समेत अन्य वन्य प्राणी ट्रैक पर नहीं आ पाएंगे। 2015 में फेंसिंग का लिए काम शुरू भी हुआ, लेकिन आधा-अधूरा ही रहा। अभी भी फेंसिंग लगाने की सामग्री वहीं पड़ी हुई है, लेकिन आधी से ज्यादा फेंसिंग अब तक नहीं लगी है। इसका नतीजा है कि आए दिन यह लापरवाही वन्य प्राणियों की जान के लिए खतरा बनी हुई है।

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