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वनमंत्री की घोषणा के 45 दिन बाद भी आईएफएस पर नहीं गिरी गाज

छतरपुर के फॉरेस्ट क्षेत्र में निजी लोगों की जमीनें होने का मामला, वन मुख्यालय का तर्क-रिपोर्ट आने का इंतजार

भोपाल। विधानसभा में वन मंत्री द्वारा दोषी अधिकारियों के खिलाफ 15 दिन में कार्रवाई करने का आश्वासन देने के बाद भी विभाग के आला अधिकारी हाथ पे हाथ धरे बैठे हैं। इसको लेकर छतरपुर के विधायक आलोक चतुर्वेदी का आरोप है कि दोषी आईएफएस अफसरों को बचाया जा रहा है। उधर, वन मुख्यालय का तर्क है कि रिमाइंडर भेजने के बाद भी रिपोर्ट आने का इंतजार है। मामला छतरपुर जिले के सूरजपुर वन खंड का है।

जुलाई में विधानसभा सत्र के दौरान स्थानीय विधायक आलोक चतुर्वेदी ने सरकार को घेरते हुए कहा था कि मेरे एक सवाल के जवाब मैं मुझे और मेरे परिवार को अतिक्रमणकारी बताया था। वहीं प्रश्न जब अब पूछा है तो अतिक्रमणकारी नहीं होना बताया गया। ऐसे दोहरे जवाब क्यों। इस पर सदन में भारी शोर-शराबा हुआ था। विधानसभा अध्यक्ष को हस्तक्षेप करते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की व्यवस्था दी गई थी। विधायक ने आरोप लगाया था कि छतरपुर में लाखों हेक्टेयर जमीन में वन विभाग काबिज है, जबकि वे निजी भूमियां हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2015 में मुख्य सचिव द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर भी कार्रवाई होने की कोई जानकारी नहीं है।

विधानसभा अध्यक्ष ने यह कहा था : यदि कोई असत्य कथन करता है या भ्रामक जानकारी देता है, उसके लिए प्रश्न एवं संदर्भ समिति बनी है, परंतु उसके बाद भी आसंदी से निर्देश जारी किया गया है कि इसकी अलग से 15 दिन के भीतर कार्रवाई करें।

वन मंत्री ने यह दिया था आदेश

विधानसभा अध्यक्ष द्वारा की गई व्यवस्था पर वन मंत्री विजय शाह ने कहा था कि जिन अधिकारियों ने लापरवाही पूर्वक जवाब दिया है, हम उनके खिलाफ 15 दिन के अंदर कार्रवाई करेंगे। वन मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया था कि कलेक्टर को निर्देश देंगे कि एक माह में संबंधित वन खंड की आपत्तियां संबंधी आवेदन लेकर इसका निराकरण कराएं। कार्रवाई की सूचना विधायक को देने का भी आश्वासन दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि पूरे मप्र में राजस्व और वन भूमि की जमीन को लेकर झगड़े हुए हैं।

रिपोर्ट आने, उस पर अध्ययन करने के बाद होगी कार्रवाई

करीब 15 दिन पहले सीएफ वर्किंग प्लान छतरपुर को निर्देश दिए गए थे कि संबंधित वन खंड की जमीनों का सर्वे कराते हुए वास्तविक स्थिति से अवगत कराया जाए। इसमें पता करना होगा कि कौन-कौन काबिज है। रिपोर्ट नहीं आने पर एक बार फिर पत्र लिखा है। रिपोर्ट आने और उस पर अध्ययन करने के बाद आगे की कोई कार्रवाई होगी। -वसवराज अन्निगेरी, एपीसीसीएफ, भू-प्रबंधन

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