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कम पानी में बाजरे की नई किस्म पर शोध शुरू

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने विश्वविद्यालय को दिया प्रोजेक्ट, पैंतालीस लाख रुपए भी दिए

आशीष शर्मा/ग्वालियर। मोटा अनाज यानि श्री अन्न स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी फायदेमंद है। यही वजह है कि देश ही नहीं बल्कि विदेशी लोग भी ज्वार, बाजरा, रागी, जौ, कोदो, कंगनी और समा को बड़े चाव खा रहे हैं। यही वजह है कि मोटे अनाज की डिमांड बढ़ गई है, लेकिन मोटे अनाज का उत्पादन कम ही हो रहा है। इसे लेकर ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बाजरा की (ऐसी किस्म जो ज्यादा गर्मी और कम पानी में तैयार हो सके) को लेकर लिए राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि ग्वालियर को प्रोजेक्ट दिया है और इसके लिए 45 लाख रुपए दिए हैं। विवि को यह प्रोजेक्ट 2026-27 तक पूरा करना है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला के निर्देशन में वैज्ञानिक डॉ. सुषमा तिवारी ने इस विषय पर काम करना भी शुरू कर दिया है।

बीज डालकर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा :

वैज्ञानिक डॉ. सुषमा तिवारी ने बताया कि कम पानी और ज्यादा तापमान में बाजरे की फसल हो सके, इसके लिए खेतों में बाजरे के बीजों को अलग-अलग क्यारियों में बोया जाएगा। एक क्यारी में पानी, खाद दिया जाएगा और दूसरी क्यारी को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा। इसके बाद देखा जाएगा कि दोनों क्यारियों में क्रॉप कितने दिन में निकलती है। इसके साथ ही यह देखा जाएगा कि कितने दिन के अंदर फसल तैयार हो रही है। उनका कहना है कि एक साल में दो बार ऐसा प्रयोग किया जाएगा।

बाजरे की फसल कम पानी और ज्यादा तापमान में तैयार हो सके, इसके लिए आईसीएआर से प्रोजेक्ट मिला है। विवि ने इसके ऊपर शोध शुरू कर दिया है। प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला, कुलगुरु कृषि विवि ग्वालियर

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