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क्यों है पारसी समुदाय में गिद्धों को शव खिलाने की परंपरा, Ratan Tata नहीं बने इस प्रथा का हिस्सा; क्या है ‘टावर ऑफ साइलेंस’

मुंबई। भारत के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का 86 वर्ष की उम्र में 9 अक्टूबर को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। वे भारत के जाने-माने बिजनेस टायकून और फिलांथ्रोपिस्ट थे। उन्होंने टाटा समूह से जुड़कर उसे नई ऊंचाइयां दी। रतन टाटा पारसी समुदाय से थे लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारंपरिक पारसी रीति-रिवाजों से नहीं बल्कि इलेक्ट्रिक अग्निदाह के जरिए किया गया। यह पारंपरिक पारसी अंतिम संस्कार प्रक्रिया से अलग है।

पारसी समुदाय की अंतिम संस्कार प्रक्रिया

पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म से अलग होती है। पारसियों में मृत शरीर को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ या ‘दखमा’ में रखा जाता है। इस प्रक्रिया को ‘दोखमेनाशिनी’ कहा जाता है। इसके पीछे पारसी धर्म की एक गहरी मान्यता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है और उसे जलाने, दफनाने या जल में प्रवाहित करने से पृथ्वी, अग्नि और जल अपवित्र हो जाते हैं।

क्या है टावर ऑफ साइलेंस

टावर ऑफ साइलेंस को दखमा भी कहा जाता है जो एक गोलाकार संरचना होती है। यहां शव को ले जाकर सूर्य की किरणों के सामने रखा जाता है। शव को पक्षियों, विशेषकर गिद्धों के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि वे उसे खा सकें। यह प्रक्रिया पारसियों की धार्मिक मान्यता और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। गिद्धों का शवों को खाना पारसी अंतिम संस्कार का हिस्सा है।

Death in the city: How a lack of vultures threatens Mumbai's 'Towers of Silence' | Cities | The Guardian
टावर ऑफ साइलेंस (फाइल फोटो)।

मृत शरीर को क्यों नहीं जलाया जाता

पारसी धर्म में मृत शरीर को जलाना या दफनाना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के रूप में देखा जाता है। मृत शरीर को अपवित्र माना जाता है और उसे किसी भी प्राकृतिक तत्व से संपर्क में लाना अनुचित समझा जाता है। पारसी धर्म में पृथ्वी, अग्नि और जल को अत्यंत पवित्र माना गया है, इसलिए शरीर को गिद्धों को सौंपकर प्राकृतिक रूप से समाप्त किया जाता है।

रतन टाटा का अंतिम संस्कार क्यों हुआ अलग

रतन टाटा पारसी थे और उनका अंतिम संस्कार पारंपरिक तरीके से नहीं हुआ। टाटा परिवार ने रतन टाटा के लिए वर्ली के इलेक्ट्रिक अग्निदाह का चयन किया। इससे पहले, टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का भी अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक अग्निदाह के माध्यम से हुआ था।

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