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रामभद्राचार्य को संस्कृत और गुलजार को उर्दू के लिए मिलेगा ज्ञानपीठ पुरस्कार, हुई घोषणा

नई दिल्ली। जगद्गुरु रामभद्राचार्य और गीतकार गुलजार को 58 वां ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा। निर्णायक मंडल ने शनिवार को 2023 के लिए दोनों के नामों की घोषणा की। ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक जगद्गुरु रामभद्राचार्य को संस्कृत साहित्य और गुलजार को उर्दू साहित्य के लिए इन पुरस्कारों को देने का निर्णय लिया गया है।

ज्ञानपीठ पुरस्कार के इतिहास में संस्कृत भाषा को दूसरी बार और उर्दू को पांचवीं बार यह पुरस्कार दिया जाएगा। देश के इस सर्वोच्च साहित्य सम्मान के  विजेताओं को इनाम में 11 लाख की राशि, वाग्देवी की प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

240 किताबें लिखी हैं रामभद्राचार्य ने

यूपी के चित्रकूट के निवासी रामभद्राचार्य विद्वान, शिक्षाविद, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं। वह चित्रकूट में संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे 22 भाषाएं बोलते हैं और संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में लिखते हैं। उन्होंने 240 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथ लिखे हैं। उनके द्वारा लिखे गए चार महाकाव्य में दो संस्कृत और दो हिंदी में लिखे गए हैं। उन्हें 2015 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

कार मैकेनिक से उर्दू के हस्ताक्षर बने गुलजार

गुलजार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा हिन्दी फिल्मों के जाने-माने गीतकार हैं। वह पटकथा लेखक, फिल्म निर्देशक और नाटककार के साथ एक शायर भी हैं। उनकी रचनाएं हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं। गुलजार को 2002 में सहित्य अकादमी पुरस्कार और 2004 में पद्म भूषण सम्मान मिल चुका है। अपनी लंबी फिल्मी यात्रा के साथ साथ गुलजार अदब के मैदान में नई मंजिलें तय करते रहे हैं। नज्म में इन्होंने एक नई विधा त्रिवेणी का आविष्कार किया है, जो तीन पंक्तियों की नज्म होती है। उनका जीवन संघर्ष की एक मिसाल कहा जाता है। एक कार मैकेनिक के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले गुलजार अपनी नज्मों से सभी पीढ़ियों के दिलों पर राज करते हैं।

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