जनजातीय संग्रहालय के 11वें स्थापना दिवस पर शुरू हुए ‘महुआ महोत्सव’ में देश के कई राज्यों की सांस्कृतिक झलक देखने को मिली। इस दौरान शिल्प मेले में लोग विभिन्न राज्यों के शिल्प खरीदने के लिए स्टॉल्स पर पहुंचे। वहीं, फूड जोन में शहरवासी मप्र के कोरकू समुदाय के व्यंजन महुआ लड्डू, महुआ गेतरे (गुलाब जामुन), भील समुदाय की छाछ की सब्जी, बाजरा रोटी, कोदो भात का लुत्फ उठाते दिखे। मप्र के अलावा मणिपुर की चम्फुट डिश (बिना मसालों की उबली सब्जियां) खास है।
ओडिशा के व्यंजनों में आरसापीठा, नीमकी, रसबड़ा, छेना गजा (मीठा), खजूर पीठा, दूध केक को भी शामिल किया गया है। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए जनजातीय कार्य मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने जनजातीय आवास एवं लौह शिल्प ‘बाना’ का लोकार्पण किया। कार्यक्रम में सिरोंज विधायक उमाकांत शर्मा, एनपी नामदेव, श्रीराम तिवारी, डॉ. धर्मेंद्र पारे, अशोक मिश्र उपस्थित रहे।
मणिपुर में हिंसा के कारण बदला व्यवसाय
मणिपुर की आर्टिस्ट रोमोला येन्सेमबम अपने साथ मणिपुरी गुड़िया सहित अन्य कई प्रकार की सामग्री लेकर आर्र्इं हैं। उन्होंने बताया कि वह थिएटर ग्रुप से जुड़ी हुई हैं लेकिन बीते दिनों मणिपुर में हुई हिंसा की वजह से वह रिहर्सल नहीं कर पा रही हैं, इसलिए उन्हें एग्जीबिशन में शामिल होकर दूसरा रोजगार तलाशना पड़ा। कपड़े से बनी गुड़ियों में उन्होंने राधारानी द्वारा रास में पहने जाने वाली ड्रेस पहनाई है। वहीं, कुछ गुड़ियों को पारंपरिक मणिपुरी ड्रेस पहनाकर तैयार किया है। इसके अलावा गोल्डन बैंबू (बांस) से बने उत्पादों में हाथ के पंखे, छतरियां, फर्श की चटाई, मछली के जाल को शामिल किया गया है।
ओडिशा के आर्टिस्ट लेकर आए मेटल से बने शिल्प
शिल्प मेले में ओडिशा से आए चितौ रंजन बताते हैं कि वह अपने साथ धातु से बनी गणेशजी, रामजी, लक्ष्मीजी सहित कई भगवानों की प्रतिमाएं लाएं हैं। इसके अलावा दीपक, लालटेन, मेटल बॉक्स, मछली, हिरण, कैंडल स्टैंड आदि भी लाएं हैं, जो कि देखने में काफी अट्रेक्टिव हैं। उन्होंने बताया कि उनके परिवार द्वारा पिछली कई पीढ़ियों से मेटल के उत्पाद बनाए जा रहे हैं। वहीं ओडिशा के संबलपुरी वस्त्र, एप्लिक वर्क में लटकन, टेबल क्लॉथ, कुशन कवर, पिलो कवर, लैंप शेड भी शामिल किए गए हैं।
नृत्य नाटिका ‘वीरांगना रानी दुर्गावती’ का मंचन
वहीं, महोत्सव में योगेश त्रिपाठी द्वारा लिखी नृत्य नाटिका ‘वीरांगना रानी दुर्गावती’ का मंचन किया गया। इसका निर्देशन रामचंद्र सिंह ने किया। इसमें दिखाया गया कि दुर्गावती का विवाह गोंड राजा दलपत शाह के साथ हुआ। पुत्र वीर नारायण का जन्म होने के कुछ समय बाद राजा दलपत शाह का निधन हो गया। इसके बाद मुगल बादशाह अकबर ने उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया। अकबर के साथ लड़ते हुए रानी और उनका पुत्र शहीद हो गए थे।
कार्यक्रम में कई राज्यों के व्यंजनों का स्वाद लेने का मौका मिला। साथ ही मणिपुरी गुड़िया, तेलंगाना की मोती ज्वेलरी, कलमकारी, बांस शिल्प, पिलो कवर, ओडिशा के मेटल शिल्प, संबलपुरी पोशाक सहित कई आर्कषक वस्तुएं शामिल हैं। इसके अलावा रानी दुर्गावती पर आधारित नृत्य नाटिका में रानी दुर्गावती के संघर्ष और वीरता के बारे में जानने का मौका मिला। – दक्षा सिंह, विजिटर