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‘प्रमोशन कर्मचारी का हक नहीं, लेकिन योग्य हों तो विचार जरूरी’, पदोन्नति पर SC का अहम फैसला

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कर्मचारी को पदोन्नति का सीधा अधिकार भले न हो, लेकिन यदि वह अयोग्य नहीं है तो उसके प्रमोशन पर विचार अवश्य किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तमिलनाडु पुलिस के एक कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई करते हुए आई, जिसे सब-इंस्पेक्टर के पद के लिए प्रमोशन पर विचार नहीं किया गया था।

क्या था मामला

तमिलनाडु पुलिस में कार्यरत एक कांस्टेबल ने 2019 में विभागीय पदोन्नति प्रक्रिया के तहत प्रमोशन पर विचार न किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उसकी नियुक्ति मार्च 2002 में हुई थी। 2019 में एक अधिसूचना के तहत 20% विभागीय कोटे में कांस्टेबलों के इन-सर्विस प्रमोशन के लिए पात्र उम्मीदवारों पर विचार किया जाना था। हालांकि, उसे इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।

पुराने आरोप की सजा हो चुकी थी समाप्त

कांस्टेबल पर आरोप था कि चेकपोस्ट पर तैनाती के दौरान उसने एक सहकर्मी की पिटाई की थी, जिस पर उसके खिलाफ विभागीय जांच और आपराधिक कार्यवाही हुई। आपराधिक मामले में उसे गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन बाद में अदालत ने उसे बरी कर दिया। विभागीय सजा के रूप में उसकी एक साल की वेतनवृद्धि रोक दी गई थी, लेकिन यह सजा भी 2009 में सरकार द्वारा समाप्त कर दी गई थी।

इसके बावजूद 2019 में प्रमोशन के लिए विचार करते समय पुलिस अधीक्षक ने यह कहते हुए उसे अयोग्य ठहरा दिया कि 2005 में दी गई सजा के कारण वह नियमों के तहत योग्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा, “यह एक स्थापित सिद्धांत है कि किसी कर्मचारी को सीधे तौर पर पदोन्नति का अधिकार नहीं होता, लेकिन यदि वह अयोग्य नहीं है, तो प्रमोशन पर विचार न करना अन्यायपूर्ण है।”

अदालत ने माना कि कांस्टेबल का प्रमोशन पर विचार करने का अधिकार अन्यायपूर्वक छीना गया।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब 2009 में ही विभागीय सजा रद्द कर दी गई थी, तो 2019 में उसे अयोग्य ठहराना पूरी तरह गलत था। अदालत ने आदेश दिया कि कांस्टेबल को प्रमोशन के लिए तुरंत विचार किया जाए। यदि वह योग्य पाया जाता है, तो उसे 2019 से प्रभावी रूप से पदोन्नत किया जाए और सभी वित्तीय एवं अन्य लाभ दिए जाएं।

पीठ ने यह भी कहा कि यदि अब तक उम्र की सीमा पार भी हो चुकी हो, तो भी उसे प्रमोशन के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह देरी अधिकारियों की गलती थी, न कि कांस्टेबल की।

हाई कोर्ट का आदेश भी रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया जिसमें कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला न्याय और सेवा नियमों की सही व्याख्या का है, जिसमें निचली अदालतों को सतर्क रहना चाहिए।

 

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