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निजी गोदाम संचालक बिफरे, अगले सीजन में गेहूं-चना रखने से किया मना

दो साल से हाई पॉवर कमेटी लगातार कर रही बैठकें पर किराया नहीं मिला

विजय एस. गौर-भोपाल। प्रदेश भर के करीब 8 हजार निजी गोदाम संचालकों को बीते तीन साल का 2,100 करोड़ रुपए किराया नहीं मिला है। इससे बिफरे गोदाम संचालकों ने अब अगले सीजन में गेहूं और चना की फसलों का भंडारण करने से मना कर दिया है। हालांकि बीते दो साल से भुगतान की इस समस्या को निपटाने के लिए हाई पॉवर कमेटी बनी और कमेटी की लगातार बैठकें भी हो रही हैं, लेकिन किराया चुकता होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है।

दरअसल, रबी और खरीफ सीजन में समर्थन मूल्य पर कृषि उपज की खरीदी के बाद सरकारी गोदामों की कमी के चलते उनका भंडारण निर्धारित नियम और शर्तों के तहत निजी गोदामों में करवाया जाता है। इसके बदले मप्र भंडार गृह निगम भुगतान करता है पर ये भुगतान तीन साल से नहीं हुआ है।

‘समर्थन’ की खरीद पर सवाल

अगले सीजन में होने वाली समर्थन मूल्य की खरीद के बाद अब उपज को सुरक्षित रखने पर सवाल खडे हो गए हैं। अनदेखी इस कदर की गई कि बीते दो से तीन साल से गेहूं, चना, धान, मूंग आदि का भंडारण निजी गोदामोें में करवाने के बावजूद किराया नहीं दिया गया। वर्ष 2016-17 में प्याज की कमी के चलते भंडारित करवाई गई प्याज का किराया भी नहीं दिया गया है।

दो प्रमुख सचिव और दो प्रबंध संचालक बदले

किराया भुगतान के लिए प्रमुख सचिव खाद्य और भंडारगृह निगम के प्रबंध संचालक स्तर की हाई पॉवर कमेटी बीते दो साल से कार्यरत है। इस बीच खाद्य विभाग के दो प्रमुख सचिव और भंडारगृह निगम के दो प्रबंध संचालक बदल गए हैं। वर्तमान में तीसरे प्रमुख सचिव और प्रबंध संचालक बकाया चुकाने के लिए प्रयासरत हैं।

इसलिए नहीं हो पा रहा भुगतान

वेयरहाउस कार्पोरेशन के अपने गोदामों के साथ ही निजी गोदामों में उपज रखवाई जाती है। इसमें लॉस भी होता है। इसके बदले नागरिक आपूर्ति निगम (नान) और मार्कफेड से भुगतान मिलता है, जिनको फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया से भुगतान होता है। सूत्रों के अनुसार नान और मार्कफेड से भुगतान मिल चुका है, जिसको वेयरहाउस कार्पोरेशन में रखी उपज पर खर्च और कर्मचारियों अधिकारियों के वेतन भत्तोें आदि के लिए पेमेंट कर दिया गया। इस सबका का नतीजा यह कि प्राइवेट वेयर हाउसों के लिए पेमेंट नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा गोदामों में उपज रखी होने के दौरान सुखान आदि कारणों से नुकसान भी होता है, लेकिन बीते सालों में कार्पोरेशन के गोदामों में लॉस की राशि निजी गोदामों से कई गुना ज्यादा होने से भी पेमेंट एकतरफा हो गया। ऐसे में निजी गोदाम संचालकों का भुगतान अटका पड़ा है।

जानिए एक वेयर हाउस का खर्च : एक ओर किराया नहीं मिल रहा है, दूसरी ओर वेयरहाउसों के रखरखाव का खर्च वहन करना पड़ रहा है। अगर हम एक वेयरहाउस की बात करें तो यहां 4 से 8 कर्मचारी तैनात होते हैं। इसके अलावा बिजली, पानी का बिल और उपज को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव भी शामिल है। इसमें एक से डेÞढ लाख रुपए महीना खर्च हो रहा है।

किराया नहीं मिला तो 23 जनवरी से करेंगे आंदोलन

पता नहीं गोदामों का किराया कब तक मिलेगा है। गोदामों में सरकारी भंडारण की रक्षा और देखभाल में प्रति गोदाम हर माह एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्च हो रहा है। अब प्रदेशभर के गोदाम संचालक 23 जनवरी से आंदोलन शुरू कर देंगे। -नवनीत रघुवंशी, अध्यक्ष, मप्र वेयरहाउस ऑनर्स एसोसिएशन

किराये की हर माह डिमांड आती है, कर रहे विचार

किराया भुगतान के लिए पीएस और एमडी स्तर की कमेटी है, जो लगातार बैठकें करके निराकरण की दिशा में सक्रिय हैं। किराये की हर महीने डिमांड आती है, जिस पर विचार होता है। बकाया किराया चुकाने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। -अमन पस्तोर, एकाउंट ऑफिसर, वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन

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