
सीरिया में जारी भीषण संघर्ष और विद्रोहियों के कब्जे के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद देश छोड़कर रूस भाग गए हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने असद और उनके परिवार को राजनीतिक शरण दी है। पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने जानकारी दी कि यह राष्ट्रपति का निजी फैसला था। हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार किया कि असद और उनका परिवार कहां ठहरा हुआ है।
विद्रोहियों ने किया दमिश्क पर कब्जा
8 दिसंबर को विद्रोही गुटों ने सीरिया की राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति असद ने देश छोड़ दिया। इससे पहले विद्रोहियों ने अलेप्पो, हमा, होम्स और दारा जैसे प्रमुख शहरों पर कब्जा कर लिया था। विद्रोही गुट HTS और स्थानीय संगठनों के इस तेजी से बढ़ते प्रभाव के कारण असद सरकार का पतन हो गया। अमेरिका ने सीरिया में असद सरकार के पतन का स्वागत किया है।
ईरान ने जताई हैरानी
असद सरकार के प्रमुख सहयोगी ईरान ने सीरिया में हुए तख्तापलट पर हैरानी जताई है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने कहा कि यह अप्रत्याशित है कि सीरियाई सेना विद्रोहियों को रोकने में विफल रही। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति असद ने ईरान से किसी प्रकार की मदद नहीं मांगी थी।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने जारी किया बयान
भारत ने भी इस मुद्दे पर बयान जारी करते हुए कहा है कि सीरिया की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा होनी चाहिए। विदेश मंत्रालय ने अपील की कि राजनीतिक प्रक्रिया को शांति के साथ आगे बढ़ाया जाए।
सीरिया संघर्ष की प्रमुख घटनाएं
- 27 नवंबर को सेना और विद्रोहियों के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई।
- 1 दिसंबर को अलेप्पो पर विद्रोही गुट HTS ने कब्जा किया।
- 5 दिसंबर को हमा शहर पर विद्रोहियों ने कब्जा किया।
- 6 दिसंबर को दारा में स्थानीय विद्रोहियों ने कब्जा जमाया।
- 7 दिसंबर को होम्स शहर को विद्रोहियों ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
- 8 दिसंबर को दमिश्क में विद्रोही घुसे और कब्जा करने में सफल हुए। इसी बीच राष्ट्रपति असद रूस भाग गए।
अमेरिका ने बनाई दूरी
अगले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा, “अमेरिका को सीरिया के संघर्ष में शामिल नहीं होना चाहिए। यह हमारी लड़ाई नहीं है।” डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान ने संकेत दिया है कि वह विद्रोहियों के प्रयासों में प्रत्यक्ष रूप से कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
क्यों शुरू हुई यह लड़ाई
सीरिया में 2011 में लोकतंत्र की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे। बशर अल-असद की सरकार ने इन प्रदर्शनों को बलपूर्वक कुचल दिया। इसके बाद सशस्त्र विद्रोह शुरू हुआ। शुरुआती विद्रोही गुट छोटे और अलग-अलग विचारधाराओं के थे, लेकिन इनका एकमात्र उद्देश्य असद सरकार को हटाना था। विद्रोहियों को तुर्की, सऊदी अरब, यूएई और अमेरिका का समर्थन मिला, जबकि असद सरकार को रूस और ईरान का समर्थन प्राप्त था।
आतंकी संगठनों की भूमिका
सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान आतंकी संगठनों ने भी हस्तक्षेप किया। 2014 तक चरमपंथी समूहों और आईएसआईएस ने सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। इस स्थिति ने वैश्विक चिंता बढ़ाई। अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन ने आईएसआईएस के खिलाफ अभियान चलाया। कुर्द लड़ाकों के गठबंधन सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) ने आईएसआईएस के सफाए में अहम भूमिका निभाई।
2020 में हुआ था युद्धविराम
रूस और तुर्की ने 2020 में युद्धविराम पर सहमति जताई थी। हालांकि, सीरियाई सरकार अपने सभी इलाकों पर नियंत्रण नहीं पा सकी। विद्रोही गठबंधन की ताकत फिर से बढ़ी और उन्होंने बड़े शहरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।
विद्रोहियों ने बढ़ाई रणनीति
इस बार विद्रोही अधिक संगठित थे। उन्होंने अलेप्पो पर हमले से शुरुआत की और वहां तेजी से कब्जा किया। इसके बाद, उन्होंने हमा और होम्स शहरों की ओर रुख किया। दमिश्क पर कब्जा उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। रूस, यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है और वहीं ईरान, इजराइल के हमलों से जूझ रहा है। इन परिस्थितियों का विद्रोहियों ने फायदा उठाया।
विद्रोही गठबंधन की संरचना
नया विद्रोही गठबंधन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में है। यह संगठन पहले अल-कायदा से जुड़ा हुआ था। तुर्की समर्थित फ्री सीरियन आर्मी और अन्य गुटों ने भी इसमें भाग लिया है। हालांकि, कुछ गुट एसडीएफ के खिलाफ लड़ चुके हैं, जिससे गठबंधन में मतभेद भी हैं।
क्या असद सरकार की वापसी संभव है?
सीरिया में सत्ता परिवर्तन क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति पर असर डाल सकता है। अमेरिका और तुर्की विद्रोहियों का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन रूस और ईरान की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी।
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