नई दिल्ली। दुनिया में पांच में से एक प्रवासी प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है और 44 प्रतिशत की आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। सोमवार को जारी संयुक्त राष्ट्र की पहली विश्व की प्रवासी प्रजातियों की स्थिति रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। जलीय पारिस्थितिक तंत्र में स्थिति कहीं ज्यादा खराब है, संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में प्रवासी प्रजातियों पर संधि (सीएमएस) के तहत संरक्षण के लिए सूचीबद्ध 97 प्रतिशत प्रवासी मछलियों के विलुप्त होने का खतरा है। इस संधि के तहत करीब 1200 प्रवासी प्रजातियों की निगरानी की जाती है। सीएमएस की स्थापना 1979 में की गई थी। यह प्रवासी प्रजातियों के जीवित रहने और पनपने को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्यों पर सहमत होने के वास्ते देशों और हितधारकों को एक साथ लाने पर ध्यान केंद्रित करती है।
76 प्रतिशत आबादी में देखी जा रही है गिरावट की प्रवृत्ति
सम्मेलन के परिशिष्ट-1 के तहत सूचीबद्ध 82 फीसद प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है। 76 फीसद की आबादी में गिरावट की प्रवृत्ति है। परिशिष्ट-2 प्रजातियों में से 18 फीसद विश्व स्तर पर खतरे में हैं, जिनमें से 42 फीसद की आबादी में गिरावट देखी जा रही है। संधि के परिशिष्ट-1 में उन प्रवासी प्रजातियों की सूची दी गई है जो लुप्तप्राय हैं। परिशिष्ट-2 में उन प्रवासी प्रजातियों की सूची दी गई है जिनकी संरक्षण स्थिति प्रतिकूल है तथा उनके संरक्षण की आवश्यकता है।
खतरे में पड़ी 399 प्रवासी प्रजातियां पहचानी गईं
रिपोर्ट में विश्व स्तर पर खतरे में पड़ी और लगभग खतरे में पड़ी 399 प्रवासी प्रजातियों (मुख्य रूप से पक्षी और मछलियां) की भी पहचान की गई है जो अभी तक सीएमएस परिशिष्टों में सूचीबद्ध नहीं हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का लाभ मिल सकता है। सीएमएस की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल के अनुसार, अत्यधिक दोहन (शिकार और मछली पकड़ना, लक्षित और आकस्मिक दोनों) कई प्रवासी प्रजातियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। यह आवासन की हानि और बिखराव को पार कर गया है।