
नरेश भगोरिया, भोपाल। मप्र में लोकसभा चुनाव चार चरणों में होंगे। पांच साल पहले 2019 में महाकोशल-विंध्य की जिन 6 सीटों पर पहले चरण में मतदान हुआ था, वहां कांग्रेस को ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है। दो चुनावों के तुलनात्मक आंकड़े बताते हैं कि एक दशक से छह में से पांच सीट भाजपा के कब्जे में हैं।
साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस छह में से एक मात्र छिंदवाड़ा सीट बचाने में कामयाब रही थी लेकिन इस सीट पर पार्टी को मिलने वाले वोट 3 प्रतिशत कम हो गए थे। एक मात्र मंडला सीट ऐसी रही जहां कांग्रेस ने अपने वोट में 2 फीसदी की वृद्धि की थी। जबकि चार सीटों पर 2014 के मुकाबले हार का अंतर 1.67 प्रतिशत से 6.38 प्रतिशत तक बढ़ गया था।
इस बार महाकोशल और विंध्य की छह सीटों सीधी, शहडोल, मंडला, जबलपुर, बालाघाट और छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा ने प्रत्याशियों की घोषणा में बाजी मार ली है। कांग्रेस ने पहली सूची में सीधी, मंडला और छिंदवाड़ा से प्रत्याशी घोषित किए।
वक्त की कमी भी आएंगे आड़े
2019 के चुनाव में मप्र में पहले चरण का मतदान 29 अपै्रल को हुआ था जबकि आचार संहिता 11 मार्च को लग गई थी। इस तरह प्रत्याशियों के पास प्रचार के लिए ज्यादा वक्त मिला था। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को है, जबकि आचार संहिता 16 मार्च को लगी। ऐसे हालातों में कांग्रेस को खासी मशक्कत करने की जरूरत है।
चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारियां नहीं दिख रहीं
लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को जो तैयारियां करनी चाहिए थी, वो नहीं दिख रही हैं। महाकोशल में ही जबलपुर को छोड़ दिया जाए तो दो आम चुनावों में हर सीट पर हर बाद प्रत्याशी बदल दिया गया। इस बार भी कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ने से इनकार कर रहे हैं, इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है। ऐसी स्थिति में जितने प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले थे, उससे ज्यादा या उतने ही प्राप्त करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को जो सदमा लगा है वह उससे उबर नहीं पाई है। -गिरिजा शंकर, राजनीतिक विश्लेषक
दो लोकसभा चुनाव:जानिए कहां कैसी रही भाजपा-कांग्रेस की स्थिति