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बांधवगढ़ में क्षमता से ज्यादा टाइगर्स का साइड इफेक्ट, बढ़ रहे इंसानों पर हमले; आज भी अटैक की दो घटनाएं, 1 की मौत, 1 घायल

उमरिया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और उससे सटे जंगलों में लगातार बाघ के इंसान पर हमले की वारदातें बढ़ रही हैं। शनिवार को टाइगर अटैक की दो अलग-अलग घटनाएं हुईं, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि दूसरी घटना में एक शख्स घायल हो गया। मार्च 2023 के बाद से अब तक बांधवगढ़ में टाइगर द्वारा इंसानों पर हमले की 16 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 7 की मौत हुई है। पार्क प्रबंधन इसके लिए बाघों की लगातार बढ़ती संख्या और जंगलों में इंसानी घुसपैठ को जिम्मेदार ठहरा रहा है। हालांकि, ये भी एक हकीकत है कि बाघ द्वारा किए जा रहे हमले की घटनाएं अब रिजर्व फॉरेस्ट के बाहर भी हो रही हैं। ऐसी ही एक घटना आज भी हुई। मानपुर बफर के रेंजर अर्पित मिराल के मुताबिक यह घटना आज सुबह हुई है।

झाड़ियों में छिपे बाघ ने ले ली जान

पहली घटना, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मानपुर बफर जोन के पतौर गांव की है। यहां 55 साल के घिन्नू सिंह अपने जानवरों को चराने के लिए गांव के समीप स्थित बफर जोन में गए थे। उसी समय उनके कुछ मवेशी झाड़ियों की तरफ जाने लगे। जब घिन्नू उन्हें रोकने के लिए गया तो झाड़ियों में बैठे हुए एक टाइगर ने एकाएक उन पर हमला बोल दिया। इस हमले में मौके पर ही घिन्नू सिंह की मौत हो गई।

एक अन्य घटना जंगली इलाके के बाहर हुई है। उमरिया के वन परिक्षेत्र के पठारी बीट से सटे राजस्व ग्राम उजान में बाघ ने एक व्यक्ति पर हमला बोल दिया। इस अटैक में उजान निवासी 35 वर्षीय प्रभु पिता मायाराम बैगा घायल हो गया। जंगल में अपने साथियों के साथ लकड़ी लेने गए प्रभु की किस्मत अच्छी थी कि हमले के दौरान कुछ साथ कुछ लोग मौजूद थे, जिनके चिल्लाने पर बाघ भाग खड़ा हुआ। बाद में घायल को लिए करकेली अस्पताल लाया गया। बाद में घायल प्रभु बैगा को जिला अस्पताल भेजा गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है।

1535 वर्ग किमी के दायरे में 165 से ज्यादा टाइगर

बाघों के लिए लिए मशहूर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को फिलहाल बागओं से ओवरलोड माना जा सकता है। इस पार्क के बफर और कोर एरिया को मिल लिया जाए तो इसका कुल इलाका लगभग 1535 वर्ग किमी है। पार्क के डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा के अनुसार इस छोटे से एरिया में ही 165 से ज्यादा टाइगर्स हैं। एनटीसीए की गाइडलाइन के अनुसार सामान्य तौर पर एक बाघ की टेरिटरी 12 वर्ग किलोमीटर की होती है, जो भोजन, पानी और मौसम के साथ ही अन्य बिंदुओं पर निर्भर करती है। वर्मा के मुताबिक, यही वजह है कि अब जगह की कमी के कारण ही बांधवगढ़ के बाघ आसपास के जंगलों और कई बार बाहरी इलाकों तक चले जाते हैं। वैसे बांधवगढ़ के नजरिए से देखा जाए तो यहां टाइगर के अलावा भालू और तेंदुए भी बहुतायत में पाए जाते हैं। ये जानवर भी कई बार इंसानों पर हमला करते हैं।

(इनपुट – गोपाल तिवारी)

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