इंदौरधर्ममध्य प्रदेश

Naag Panchami 2022 : रात 12 बजे तक श्रद्धालु कर सकेंगे दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन, साल में सिर्फ एक दिन खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर

साल में एक बार नागपंचमी पर्व पर खुलने वाले नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट सोमवार मध्यरात्रि खोले गए हैं। यहां सबसे पहले महाकालेश्वर मंदिर स्थित श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से त्रिकाल पूजन किया गया। इस दौरान मध्यप्रदेश मंत्री मोहन यादव और कमल पटेल ने भी नागचंद्रेश्वर भगवान का अभिषेक किया। सिर्फ इसी दिन मंदिर की दुर्लभ एवं आलौकिक प्रतिमा के दर्शन आम श्रद्धालुओं को होते हैं।

24 घंटे खुले रहेंगे मंदिर के पट

श्री महाकालेश्वर मंदिर का शिखर तीन खंडों में बंटा है। इसमें सबसे नीचे भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओंकारेश्वर और तीसरे खंड में नागचन्द्रेश्वर भगवान का मंदिर है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए सोमवार देर शाम 7 बजे से ही श्रद्धालुओं की कतार लग गई थी। मंदिर के पट 24 घंटे तक खुले रहेंगे। इस दौरान लाखों श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। भारतीय पंचांग तिथि अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ही मंदिर के पट खुलने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है।

महाकालेश्वर मंदिर के शिखर के तीसरे खंड पर स्थित भगवान नागचन्द्रेश्वर मंदिर।

दर्शन के लिए बनाया नया ब्रिज

महानिर्वाणी अखाड़ा की ओर से रात 12 बजे पूजन करने के बाद मंदिर में आम श्रद्धालुओं के दर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया। इस बार मंदिर प्रशासन द्वारा नागचंद्रेश्वर मंदिर तक नया ब्रिज बनाया गया है, जिससे दर्शन के बाद श्रद्धालुओं को बाहर जाने में भी आसानी रहेगी। यही कारण है कि चारधाम से लाइन में लगने के बाद करीब 1 घंटे में ही आम लोगों को दर्शन हो रहे हैं। भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन का सिलसिला 24 घंटे यानि मंगलवार को रात 12 बजे तक चलेगा।

ऐसी है भगवान की दुर्लभ प्रतिमा

नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा में फन फैलाए हुए नाग के आसन पर शिव जी के साथ देवी पार्वती बैठी हैं। संभवत: दुनिया में ये एक मात्र ऐसी प्रतिमा है, जिसमें शिव जी नाग शैय्या पर विराजित हैं। इस मंदिर में शिवजी, मां पार्वती, श्रीगणेश जी के साथ ही सप्तमुखी नाग देव हैं। साथ में दोनों के वाहन नंदी और सिंह भी विराजित हैं। शिव जी के गले और भुजाओं में भी नाग लिपटे हुए हैं। श्री महाकालेश्वर मंदिर काफी प्राचीन है।

माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। बताया जाता है कि दुर्लभ प्रतिमा नेपाल से लाकर मंदिर में स्थापित की गई थी।

मंदिर के आसपास का क्षेत्र नो व्हीकल जोन

प्रशासन ने उज्जैन में नागपंचमी पर्व के तहत सोमवार से ही मंदिर की ओर आने-जाने वाले वाहनों को चारधाम, हरसिद्धि, बेगमबाग, महाकाल घाटी, गुदरी चौराहा आदि मार्गों पर रोका गया। इधर, महाकाल मंदिर के चारों तरफ बैरिकेट्स लगे होने व श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए भी मार्ग परिवर्तित किया गया है। भारी वाहनों का प्रवेश पूर्णत: वर्जित रखा गया है। महाकाल मंदिर के आसपास का क्षेत्र नो व्हीकल जोन घोषित किया है।

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