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क्यों धड़ाधड़ बंद हो रहीं बाल पत्रिकाएं? सुनिए, ‘मप्र साहित्य अकादमी’ के निदेशक डॉ. विकास दवे का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

भोपाल(अमिताभ बुधौलिया)। ‘जिंदगी में साहित्य’ का होना बहुत जरूरी है। यह साहित्य किसी भी रूप में हो सकता है। प्रेमचंद से लेकर हैरी पॉटर तक। कुछ भी पढ़ें, अच्छा पढ़ें। साहित्य में लोगों की रुचि बराबर बनी रहे…नवोदित रचनाकारों को लिखने के समान अवसर मिलते रहें…इस दिशा में सरकारें लगातार कुछ न कुछ नए कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। इस मामले में मध्य प्रदेश की साहित्य अकादमी ने कुछ ऐसे प्रयोग किए हैं, आयोजन किए हैं…जो मिसाल के तौर पर सामने आए हैं।

‘मप्र साहित्य अकादमी’ के निदेशक डॉ. विकास दवे

पीपुल्स समाचार की वेबसाइट peoplesupdate.com ने मौजूदा सामाजिक व्यवस्थाओं और तकनीकी दौर में साहित्य की स्थिति को लेकर साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर विकास दवे से बातचीत की। उनसे ये चर्चा बच्चों के पाठ्यक्रम निर्माण से लेकर शिक्षकों के प्रशिक्षण तक और बाल साहित्य से लेकर गीत और ग़ज़ल का लेखन करने वाली डॉ. मीनाक्षी दुबे ने की। सुनिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…

बच्चों के साहित्य में भी नवाचार(innovation) की आवश्यकता

इन दिनों में मैं अनुभव कर रहा हूं,बच्चों के साहित्य में भी नवाचार की अत्यधिक आवश्यकता है। बच्चों का साहित्य तो लंबे समय से लिखा जा रहा है। अगर हम बाल पत्रिका की बात करें, तो उसका इतिहास भी सौ-सवा सौ वर्ष का हो गया है। मेरा कहना है कि इस समय बच्चों का आईक्यू लेवल(intelligence quotient) तेजी से बढ़ा है। जिस हिसाब से बच्चों के बौद्धिकस्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है, उस स्तर से बाल साहित्य नहीं लिखा जा रहा है।

भारत में बाल पत्रिकारिता का भविष्य

हमारे-आपके देखते-देखते कई बाल पत्रिकाएं बंद हुई हैं। पराग बंद हो गई। इसी कोविड पीरियड के बाद नंदन ने दम तोड़ दिया। चंदामामा के कई संस्करणों को बंद कर दिया गया। जिस देवपुत्र का मैं 32 साल से संपादक हूं, उसने एक कीर्तिमान स्थापित किया था। उसकी 3 लाख 71 हजार प्रतियां जाती थीं। तब हमको खुद भी आश्चर्य लगा था। उस समय हमको ये आभास नहीं था कि इतना बड़ा दायित्व बोध हमारे ऊपर है। कोरोना काल में सारी व्यवस्थाएं धराशायी हुईं और हम शून्य पर पहुंचे। इस तरह हमने फिर से शून्य से शुरुआत की। अभी हम उसकी 1 लाख प्रतियां छाप रहे हैं। बाल पत्रिकाएं बंद क्यों हो रहीं, उसका मूल कारण यह है कि आर्थिक दृष्टि से ये सर्वाइव नहीं कर पा रही हैं।

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के बारे में

साहित्य अकादमी की स्थापना 1954 में की गई थी। तब इसका हेडक्वार्टर नागपुर में था। बाद में जब मध्यप्रदेश राज्य बना,तो इसका मुख्यालय भोपाल आ गया। सबसे अच्छी बात यह है कि अब इसका दायरा महानगरों से लेकर तहसील स्तर तक हो चुका है। मतलब कि अब मध्य प्रदेश की साहित्य अकादमी उम्रदराज लेखकों के अलावा नवोदित रचनाकारों को बराबर का मौका दे रही है।

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