भोपाल। खुदा के लिए फरमाबरदारी, सभी लोगों के लिए नेक ख्यालात, लोगों की मदद के लिए आमादगी, नमाज की पाबंदी और पैगंबर हजरत मुहम्मद सअस के बताए सुन्नत के रास्तों पर चलकर दुनिया के साथ ही आखिरत में कामयाबी हासिल करना। जिंदगी के दरम्यान ये उसूल-ओ-ख्याल पैदा हों और उन पर पक्का इरादा रखते हुए फौरी अमली जामा पहनाई जाए तो यकीनी तौर पर दुनिया में आने का हमारा मकसद मुकम्मल माना जाएगा। इन्हीं बातों का परचम थामे, भोपाल के जाने-माने इज्तिमे की शुरूआत हो चुकी है। इज्तिमा को जोड़ भी इसीलिए किए जाते हैं। दुनियाबी भीड़ में बैठकर भी, दुनियाबी बातों से बेगाना होना, इस इज्तिमा का एक अहम शगल है।
ऊपर जो सारी बातें लिखी गई हैं, वह इज्तिमा में दिए जाने उपदेशों का एक हिस्सा है। इन्हीं ख्यालों को पैवस्त करते हुए दुनिया में रहते हुए, दुनियाबी से जुदा होकर दीन-ईमान की बात करना और इसकी दुआ करना कि हर कोई इसका पालन करे, इज्तिमा की पहली वरीयता होती है।
ईंटखेड़ी में शुरू हुआ आलमी तबलीगी इज्तिमा
भोपाल का ईंटखेड़ी इलाका आगामी चार दिनों तक एक बड़े धार्मिक आयोजन, आलमी तबलीगी इज्तिमा का केंद्र बन गया है। शुक्रवार सुबह फजिर की नमाज के साथ इस आयोजन की शुरुआत हुई। इस दौरान तकरीर, बयान, नमाज और सामूहिक निकाह जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
जुमेरात से शुरू हुई चहल-पहल
मुख्य रूप से इज्तिमा की शुरुआत शुक्रवार सुबह हुआ। हालांकि, गुरुवार शाम (जुमेरात) से ही देश-विदेश से आई हजारों जमातों के लिए बयान की महफिलें सजीं। भोपाल के मौलाना अब्दुल मालिक साहब ने शुरुआती बयान दिया। शुक्रवार को फजिर की नमाज के बाद जोहर, मगरिब और ईशा की नमाज के बीच कई खास तकरीरें आयोजित की गईं। शाम को मौलाना सआद साहब कांधलवी ने विशेष सभा को संबोधित किया, जिसमें शहर के बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
लाखों की मौजूदगी में अदा हुई जुमे की नमाज
शुक्रवार को दोपहर 1:30 बजे नमाज-ए-जुमा अदा की गई। इससे पहले जुमा का खुतबा हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। स्थानीय नागरिकों के अलावा देश-विदेश से आए जमाती इस ऐतिहासिक नमाज के गवाह बने।
सादगी में बंधे सैकड़ों निकाह
इज्तिमा के पहले दिन 350 से अधिक निकाह संपन्न हुए। ये निकाह पूरी सादगी से, सामाजिक बुराइयों जैसे महंगी शादियों और फिजूलखर्ची को रोकने के मकसद से किए गए। न बैंड, न बारात और न ही कोई आतिशबाजी। इस आयोजन में सादगी का विशेष ध्यान रखा गया। इनमें से 100 से अधिक निकाह भोपाल के बाशिंदों के थे।
पाकिस्तान को इज्तिमा में जगह नहीं
आलमी तबलीगी इज्तिमा का इतिहास 77 साल पुराना है। हालांकि, भारत में आयोजित होने वाले इस इज्तिमा में पाकिस्तान को कभी शामिल नहीं किया गया। बांग्लादेश और पाकिस्तान के जमाती अलग-अलग इज्तिमा में भाग लेते हैं। इस साल 22 से अधिक देशों से आए 150 से अधिक जमाती कार्यक्रम का हिस्सा बने हैं, जिनमें म्यांमार, मोरक्को, यूके, अमेरिका, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों के लोग शामिल हैं।
भाईचारे की मिसाल, हिंदू-मुसलमान कर रहे सेवा
इज्तिमा स्थल पर आने वाली जमातों के लिए विशेष स्वागत तंबू लगाए गए हैं। वाहनों की पार्किंग स्थल से पंडाल तक पहुंचाने के लिए निशुल्क वाहन सेवा उपलब्ध है, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय के लोग भागीदारी कर रहे हैं। इंतेजामिया कमेटी ने लगभग 300 दुकानों को अनुमति दी है, जिनमें दोनों धर्मों के व्यापारी शामिल हैं। शर्त यह है कि दुकानदारों को किफायती दरों पर भोजन और सेवाएं प्रदान करनी होंगी।
पहली बार बाइक एंबुलेंस की विशेष व्यवस्था
इज्तिमा में पहली बार बाइक एंबुलेंस सेवा शुरू की गई है। बुजुर्ग और बीमार लोगों की चिकित्सा सहायता के लिए इस व्यवस्था को लागू किया गया है। मोटरसाइकिल पर स्ट्रेचर और फर्स्ट एड बॉक्स लगाए गए हैं। जरूरत के अनुसार इसमें ऑक्सीजन सुविधा जोड़ने पर भी विचार किया जा रहा है। पहले बीमार लोगों को इमरजेंसी की हालत में इज्तिमा पांडालों से दूर खड़ी एंबुलेंस तक पहुंचने में बीमारों को परेशानी होती है, इसलिए इस बार बाइक एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है।
चार दिनों तक धार्मिक माहौल
इज्तिमा चार दिनों तक चलेगा, जिसमें लाखों लोग हर दिन शरीक होंगे। सुबह की नमाज से लेकर रात की सभा तक, हर कार्यक्रम में धार्मिकता और भाईचारे का माहौल दिखेगा। इस आयोजन का उद्देश्य धार्मिक ज्ञान के प्रसार के साथ-साथ समाज में सादगी, शांति और आपसी सहयोग का संदेश देना है।
समाप्ति पर होगी विशेष दुआ
सोमवार को इज्तिमा के समापन पर विशेष दुआ की जाएगी, जिसमें लाखों लोग एक साथ दुनिया में अमन-चैन और मानवता के लिए प्रार्थना करेंगे।
दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा इस्लामिक आयोजन
दुआ-ए-खास के साथ इज्तिमा का समापन होगा। भोपाल का आलमी तब्लीगी इज्तिमा दुनिया के 5 सबसे बड़े इस्लामिक आयोजनों में से एक माना जाता है। दुनिया में केवल 3 देशों भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसका आयोजन होता है।
इज्तिमा से पहले शहर की खास झलकियां
शुक्रवार सुबह की नमाज फजिर से शुरू हुए इज्तिमा के लिए ज्यादातर जमातें गुरुवार शाम तक इज्तिमागाह पहुंच चुकी थीं। इज्तिमा में चार दिन रुकने वाले शहरवासियों ने भी रात को ही इज्तिमागाह का रुख करना शुरू कर दिया। भोपाल टॉकीज से लेकर इज्तिमागाह तक यातायात व्यवस्था वालेंटियर्स ने संभाल ली।
यातायात सुरक्षा को लेकर भोपाल के मुख्य चौराहों पर पुलिस बल ने भी सहयोग किया। वहीं, रेलवे स्टेशन, नादरा बस स्टैंड के अलावा भोपाल टॉकीज, डीआईजी बंगला, करोंद आदि जगहों पर इस्तकबाल कैंप लगाए गए हैं। शहर से इज्तिमागाह तक के रास्तों पर जमातियों के स्वागत के पोस्टर लगाए गए हैं। सियासी, सामाजिक और अन्य लोगों ने यह पोस्टर लगाए हैं।
क्या है इज्तिमा का इतिहास
इज्तिमा शब्द अरबी भाषा का लफ्ज है, जिसका मतलब होता है- ‘इकट्ठा होना’। तब्लीगी इज्तिमा एक धार्मिक सम्मेलन है, जिसमें लोग एक साथ इकट्ठा होकर प्रार्थना करते हैं, धर्म की बातें करते हैं व समाज में शांति का संदेश फैलाते हैं।
भारत में आलमी तब्लीगी इज्तिमा की शुरुआत 1947 में भोपाल की शकूर मस्जिद में हुई थी। पहले इज्तिमा में महज 14 लोग जुटे थे, जिसकी नींव मौलाना मिस्कीन साहब ने रखी थी। उसके बाद 1971 से इज्तिमा का आयोजन बड़े पैमाने पर होने लगा। इसके लिए भोपाल की ताजुल मसाजिद को चुना गया। उसके बाद ताजुल मसाजिद परिसर में भोपाल इज्तिमा का आयोजन किया जाता रहा लेकिन बढ़ती भीड़ को देखते हुए इसका आयोजन भोपाल से सटे ईंटखेड़ी में किया जाने लगा।
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