नितिन साहनी, भोपाल। खुद मां नहीं बन सकती, लेकिन उन्होंने ममता की वो मिसाल कायम की जो समाज के लिए उदाहरण और प्रेरणा बन गया। बात कर रहे हैं भोपाल में किन्नरों की गुरू हाजी सुरैया नायक की। सुरैया ने एक-दो नहीं बल्कि पांच मासूमों को उस समय गोद लिया, जब समाज इन्हे अपनाने को तैयार न था। सुरैया ने ऐसे समय आगे आकर न केवल इन नैनिहालों को अपनाया, बल्कि परवरिश कर उनका जीवन भी संवारने में जुटी हैं। सुरैया के इन बच्चों को जब भी कोई अनाथ कहता…तो वे तपाक से जवाब देतीं “मैं हूं उनकी मां”
5 बच्चों की मां अब नानी भी बन गई हैं
सुरैया ने जिन बच्चों का लालन-पालन किया उनमें तीन बेटियां और दो बेटे हैं। सुरैया बताती हैं कि यह सिलसिला लगभग दो दशक पहले शुरू हुआ था। उस समय उन्होंने समाज के विरोध के बाद भी एक बेटी को गोद लिया। इसके बाद उन्होंने दो बेटियां और दो बेटे गोद लिए। सुरैया को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि उनकी तीनों बेटियां पढ़-लिखकर अपना घर बसा चुकी हैं और ये तीनों बेटियां सुखी और संपन्न हैं।
बेटी-बेटे में भेद नहीं
सुरैया ने तीन बेटियों के बाद दो बेटे गोद लिए थे। फिलहाल इन दोनों बच्चों की स्कूली शिक्षा चल रही है। ये दोनों आठवीं क्लास में हैं। अब तक ये बच्चे होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे, अब ये अपनी मां के साथ उनके पास ही रहेंगे। सुरैया को भोपाल किन्नर समाज में गुरू का दर्जा हासिल है और इस नाते बाकी किन्नर उन्हें मां ही कहते हैं, लेकिन सुरैया को सबसे ज्यादा आनंद उस समय मिलता है जब उनकी बेटियों के बच्चे उन्हें “नानी” कहकर उनसे लिपट जाते हैं। जननी न होते भी एक मां की तरह बच्चों का लालन-पालन करने और एक समय समाज का विरोध झेलने वाली सुरैया अब उसी समाज के लिए प्रेरणा बन चुकीं हैं। ऐसे में उनका ये सवाल काफी हद तक जाय़ज है कि, “मां शब्द पर केवल स्त्री का अधिकार कैसे हो सकता है।“
शिष्यों को भी करती हैं सपोर्ट
सुरैया की शिष्या संजना एमपी की पहली सरकारी नौकरी पानी वाली ट्रांसजेंडर हैं। फिलहाल वे सोशल एक्टिविस्ट के तौर पर समाज सेवा से जुडी हैं और चुनाव आयोग ने उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए स्टेट आइकॉन भी बनाया है। संजना कहती हैं कि “मेरा वजूद और अस्तित्व गुरू सुरैया की ही देन हैं।“.. वे भावुक होकर यह भी बोलती हैं कि बड़े से बड़ा मुखिया परिवार को एकजुट रखने में फेल हो जाता है, लेकिन उनकी गुरू सुरैया ने ट्रांसजेंडर समाज को एक सूत्र में पिरो रखा है। संजना कहती हैं कि समाज में लैंगिक भेदभाव का शिकार होते हुए भी उनकी गुरू सुरैया ने इसी समाज के ठुकराए अनाथों को अपनाकर ये जता दिया कि एक मां होने के लिए किसी को कोख से जन्म देना जरूरी नहीं।
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