
पुष्पेन्द्र सिंह-भोपाल। रविप्रताप वर्ष 2018 में पटवारी पद पर चयनित हुए। इंदौर जिले में तीन साल तक नौकरी की लेकिन उन्हें यह पद रास नहीं आया और शिक्षा विभाग में व्याख्याता पद पर चयनित होते ही पटवारी की नौकरी छोड़ दी। वे कहते हैं कि पटवारी का पद नाम से ज्यादा बदनाम है। 24 घंटे एक पैर पर खड़े रहने के बाद भी अधिकारियों की फटकार लगती है। काम के अनुसार वेतन नहीं मिलता, इसलिए नौकरी छोड़ना ही एक चारा था।
इसी तरह मौसमी साहू, नीलम धाकड़, अविनाश और जूलियस रोविंशन ने भी नौकरी छोड़ दी है। राजस्व विभाग के सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2017 और 2023 में दो बार भर्ती प्रक्रिया हुई फिर भी 15 हजार से अधिक पदों में से 3,115 खाली रहे। जिसमें से 1,776 की काउंसिलिंग 28 अक्टूबर को हुई। प्रतिभागी बताते हैं कि विभाग ने आठ-दस बार बुलाया लेकिन पूरे चयनित एक बार भी नहीं पहुंचे।
काम का अनावश्यक बोझ
पटवारी की नौकरी छोड़ने वाले जूलियस रोविंसन कहते हैं कि उनका चयन वर्ष 2023-24 में हुआ था। मंदसौर जिले के खातेगांव में पोस्टिंग हुई। जब देखा कि काम का अनावश्यक बोझ बढ़ रहा है तो पटवारी की नौकरी से मन उचटने लगा। वर्ष 2024 में ही सैनिक कल्याण बोर्ड में सहायक वर्ग दो में चयन हो गया। पटवारी की चार साल की नौकरी होने पर पूरा वेतन मिलने का नियम ठीक नहीं। सहायक वर्ग दो में पहले साल से ही पूरा वेतन मिलना शुरू हो गया।
आयुक्त भू अभिलेख का रिस्पॉन्स नहीं
पटवारी की नौकरी रास नहीं आने के कारणों को जानने आयुक्त भू अभिलेख अनुभा श्रीवास्तव से कई बार संपर्क किया गया लेकिन उपलब्ध नहीं हो सकीं। उन्हें वाट्सऐप पर सवाल भी भेजे पर पदों की डिटेल नहीं दी गई।
व्यक्ति का काम उसके मूल्यों से मेल नहीं खाता होगा
यदि व्यक्ति का काम उसकी इच्छाओं और मूल्यों से मेल नहीं खाता, तो वह काम उसके मानसिक स्वास्थ्य और संतुष्टि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसलिए, हो सकता है कि कई युवा पटवारी की नौकरी छोड़कर उन क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां वे समाज में एक सकारात्मक योगदान दे सकें। -डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी,साइकियाट्रिस्ट एंड साइकोलॉजिकल एनालिस्ट