
नितिन साहनी, भोपाल। 1 नवंबर 1956 में नए राज्य के रूप में गठन के बाद से एमपी ने तमाम राजनीतिक उतार चढ़ाव देखे लेकिन किसी भी पॉलिटिकल पार्टी का तीसरी ताकत बनना महज सपना ही रहा। प्रदेश की जनता ने समय-समय पर कुछ राजनैतिक दलों और निर्दलियों को थोड़ी-बहुत सांत्वना जरूर दी लेकिन तीसरी ताकत की हैसियत किसी भी दल को नहीं मिल सकी। ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर ये सवाल उठने लगा है कि क्या थर्ड पॉवर के तौर पर किसी दल को आगामी विधानसभा चुनाव में प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर काबिज होने का अवसर मिलेगा?
2023 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में आधा दर्जन से ज्यादा पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर मतदाताओं को लुभाने की दौड़ में हिस्सा लेंगी। ये सभी दल किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, आदिवासी और दलितों के साथ महिलाओं पर अत्याचार जैसे परंपरागत चुनावी मुद्दों के साथ ही सियासी रण में उतरेंगे। आइए जानतें हैं तीसरी शक्ति बनने की हसरत रखने वाले इन प्रमुख दलों और उनकी चुनावी तैयारियों के बारे में…
आम आदमी पार्टी (आप)
पार्टी को हाल ही में नगरीय और पंचायत चुनावों में थोड़ी-बहुत सफलता मिली है। ऐसे में उत्साहित आप को उम्मीद है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी अपने पक्ष में वोटर्स को लुभाने के लिए माहौल तैयार कर लेगी। पार्टी की चुनावी तैयारी को देखा जाए तो हाल ही में प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर सिंगरौली की महापौर रानी अग्रवाल की अगुआई में 41 सदस्यों वाली नई स्टेट टीम बनाई गई है।
राजधानी में आप की तरफ से दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सभा कर सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता रमाकांत पटेल का दावा है कि प्रदेश में चले सदस्यता अभियान के तहत साढ़े 4 लाख नए कार्यकर्ता जुड़े हैं और आप के कुल कार्यकर्ताओं की संख्या 6 लाख से ज्यादा हो गई है। पार्टी के पिछले प्रदर्शन को देखा जाए तो 2018 के विधानसभा चुनाव में आप के सभी प्रत्याशियों की जमानतें जब्त हो गई थीं। चुनाव के लिए आप का वार रूम कहां बनेगा, यह तो तय नहीं है लेकिन इसकी कमान लोकल लीडर्स के बजाय राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ संदीप पाठक के हाथ में रहेगी।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
पार्टी का प्रदेश कार्यालय भोपाल के पॉश इलाके 74 बंगले के एक सरकारी बंगले में चलता है, जिसका किराया पार्टी चुकाती है। बीएसपी पूरी तरह से कैडर बेस पार्टी है लिहाजा स्टेट कैडर में अध्यक्ष समेत केवल 13 नेता ही शामिल हैं। प्रदेश में बसपा की ताकत बढ़ाने के लिए सुप्रीमो मायावती ने मुख्य प्रदेश प्रभारी सांसद रामजी गौतम की अगुआई में 6 प्रदेश प्रभारी भी तैनात कर रखे हैं। पार्टी फिलहाल यूपी से सटे एमपी के विंध्य,ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड अंचल की पचास से ज्यादा सीटों पर फोकस कर रही है।
अविभाजित एमपी में 1993 और 1998 में पार्टी के 11-11 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे लेकिन बाद में ये आंक़डा लगातार कम होता गया। 2018 में भी पार्टी के दो विधायक जीते लेकिन इनमें से एक संजीव कुशवाह ने बीजेपी का दामन थाम लिया। पार्टी के प्रदेश कार्यालय सचिव और कोषाध्यक्ष सीएम गौतम के मुताबिक पार्टी का वार रूम ग्वालियर में बनेगा। पार्टी फिलहाल तो सभी 230 सीटों पर चुनाव में उतरने का दावा कर रही है लेकिन गौतम के अनुसार चुनाव से पहले किसी दल से गठबंधन या अन्य बदलाव का फैसला बसपा सुप्रीमो ही लेंगी।
समाजवादी पार्टी (सपा)
पार्टी ने वर्ष 2003 में विधानसभा चुनाव में 7 सीटें और उसके बाद उपचुनाव में लांजी सीट जीतकर खुद को तीसरी ताकत की रेस में शामिल कर लिया था। इसके बाद सपा पर मानो ग्रहण सा लग गया। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी एक बार फिर से खुद को रिफॉर्म कर रही है। पार्टी ने हाल ही में अपने प्रदेश संगठन में बदलाव करते हुए प्रदेश इकाई की कमान रामायण सिंह चंदेल को सौंपी है। पार्टी ने फिलहाल 29 नेताओं को प्रदेश कार्यसमिति में पदाधिकारी बनाते हुए चुनावी तैयारी शुरू की है।
सपा की नई प्रदेश इकाई का कामकाज फिलहाल भोपाल के तुलसी नगर स्थित किराए के सरकारी बंगले को रंगरोगन कराने के साथ शुरू हुआ है। आगामी 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के अवसर पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद इंदौर के नजदीक डॉ अंबेडकर नगर स्थित बाबा साहब की जन्मस्थली पर जाएंगे। पार्टी के प्रदेश कार्यालय प्रभारी रामरुचि सिंह चंदेल के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष के इंदौर दौरे के बाद पार्टी के चुनावी गठबंधन और वार रूम को लेकर अंतिम फैसला हो जाएगा। पार्टी 2023 में सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारने जा रही है लेकिन अगर 2018 के नतीजों की बात करें तो पार्टी के टिकट पर जीते एकमात्र विधायक राजेश शुक्ला बीजेपी का दामन थाम चुके हैं।
गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी (गोंगपा)
एक समय प्रदेश के महाकौशल और आदिवासी अंचलो में गहरी पैठ रखने वाली गोंगपा साल दर साल टुकड़े-टुकड़े होती गई। 2003 में पार्टी के तीन विधायक विधानसभा पहुंचे लेकिन उसके बाद से गोंडवाणा के नाम पर आपसी लड़ाई ने गोंगपा को रसातल तक पहुंचा दिया। अब गोंगपा नए सिरे से चुनावी तैयारी कर रही है। पार्टी ने फिलहाल तय किया है कि वे प्रदेश की 230 में से केवल 128 सीट पर ही चुनाव लड़ेंगे। पार्टी ने ये भी फैसला लिया है कि अपने प्रभाव वाली महाकौशल अंचल की सभी सीटों के अलावा पार्टी केवल विंध्यऔर मालवा- निमाड़ अंचल की आदिवासी बाहुल्य सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारेगी।
पार्टी ने चुनावी तैयारी को गति देते हुए महीनों से बंद पड़े अपने भोपाल के 1100 क्वार्टर स्थित किराए के सरकारी भवन का रंग-रोगन करा लिया है। पार्टी के मीडिया प्रभारी राकेश मालवीय का दावा है कि आदिवासी वोटों में बंटवारा न हो, लिहाजा गोंगपा अन्य किसी दल से गठबंधन नहीं करेगी। विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का वार रूम भोपाल में ही बनेगा और वोटर्स को पीले चावल, पीला झंडा और पीला गमछा देकर परंपरागत आदिवासी तरीके से वोट देने की अपील की जाएगी। इन चारों दलों के अलावा प्रदेश में जय आदिवासी संगठन (जयस), सपाक्स जैसे दल भी सक्रिय हैं और तीसरी ताकत बनने की इच्छा रखते हैं। हाल ही में प्रशाससनिक सेवा से समय पूर्व रिटारमेंट लेकर वास्तविक भारत पार्टी बनाने वाले डॉ वरदमूर्ति मिश्रा भी आगामी चुनाव में इसी ख्वाहिश के साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं।