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70 साल पुराने नाटक आगरा बाजार को देखने दर्शकों ने लिया 500 का टिकट

रवींद्र भवन में नाटक के दोनों शो मिलाकर लगभग 100 टिकटों की हुई बिक्री

रविवार को रंगकर्म में रुचि रखने वाले हों या सिर्फ उनके बारे में खबरें पढ़ने वाले, सभी मन में एक ही सवाल था, क्या भोपाल में नाटक देखने के लिए 500 रुपए सहयोग राशि का टिकट बिकेगा। वो भी एक दिन में नाटक के दो-दो शो होने पर। दरअसल, मौका था, स्व.हबीब तनवीर द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक आगरा बाजार के मंचन का, जिसका लेखन 1954 में किया गया था।

लगभग 70 साल पुराने हबीब साहब के चर्चित और विश्व विख्यात नाटक का भोपाल में पहला शो दोपहर 4 बजे से तो वहीं दूसरा शाम 7 बजे से रखा गया। खास बात यह रही कि टिकट खिड़की से लेकर बुक माय शो पर भी टिकट बिका भी और शहरवासियों ने नाटक देखा भी। हालांकि रवींद्र भवन का 500 सीटर वाला सभागार खचाखच तो नहीं भरा था, लेकिन यह भी क्या कम था, कि दोनों शो को मिलाकर लगभग 300 दर्शक मौजूद थे। हालांकि टिकट लेकर नाटक देखने वाले दर्शकों की संख्या लगभग 100 रही।

1954 में जामिया मिलिया विवि के शिक्षकों व छात्रों ने किया था पहला मंचन

उर्दू के नामवर18 वीं सदी के शायर नजीर अकबराबादी की जिदगी के इर्द- गिर्द बुने गए नाटक ‘आगरा बाजार’ की झलकियां दर्शकों को पसंद आईं। पुराने समय के बाजार की सीन पेश करते सेट और उर्दू- फारसी जुबान नाटक में सुनने को मिली। सेट में बाजार का सीन दिखाते डबल स्टोरी मकान, पतंग, मटकों और किताबों की दुकानें दिखीं। नाटक दो फकीरों के माध्यम से आगे बढ़ता रहा, मुफलिस कहो फकीर कहो आगरे का है, शायर कहो ‘नजीर’ कहो आगरे का है….. ये उर्दू शायर नजीर अकबराबादी का कलाम था जिसने आगरा और उसके बाशिंदों को दुनियाभर में मशहूर कर दिया था। नजीर की नज्मों पर आधारित इस नाटक का मंचन 10 साल पहले भोपाल में हुआ था। 1954 में हबीब साहब ने जामिया मिलिया के कुछ शिक्षकों, छात्रों और ओखला गांव के कुछ लोगों के साथ छोटा सा रूपक तैयार किया था, जिसने फिर नाटक की शक्ल ले ली।

नजीर की नज्म के जरिए बयां किए हालात

नाटक की कहानी एक ऐसे ककड़ी बेचने वाले की कहानी है, जिसकी ककड़ी कोई नहीं खरीदता। आखिर वह नजीर अकबराबादी की नज्मों की मदद लेता है और उसकी ककड़ियां बिकने लगती हैं। नाटक में आगरा में बाजार की मंदी का जिक्र था। अंत में इंसान की समानता को नजीर की नज्म आदमीनामा के जरिए पेश किया गया, ‘दुनिया में बादशाह है सो वह भी आदमी, और मुफलिसों-गदा है सो है वह भी आदमी, काला भी आदमी है और उल्टा है ज्यूं तवा, गोरा भी आदमी है कि टुकड़ा-सा चांद का, बदशक्लो-बदनुमा है, सो है वह भी आदमी…’ नाटक में पांच से लेकर 70 साल तक के लगभग 40 कलाकारों ने अभिनय किया।

रंगमंच से इश्क है तो रिस्क भी लिया हमने

हबीब तनवीर हम कलाकारों के गुरु थे। उन्हीं के नया थिएटर के साथ मिलकर हम थिएटर ग्रुप ने भोपाल में प्रोफेशनल रंगकर्म की दिशा में अपना कदम बढ़ाया है। हालांकि 100 टिकट बिके, लेकिन हमें रंगमंच से इश्क है तो रिस्क लेना ही था। नाटक में 6 लाख रुपए खर्च हुए। बिना जोखिम के बदलाव की शुरुआत नहीं होती। भोपाल ने हमें निराश नहीं किया, हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिला। -बालेंद्र सिंह बालू, संयोजक

सात दशक बाद भी मुद्दे जस के तस

तवायफ और दरोगा, जनता और सत्तापक्ष के रिश्ते की जटिलताओं को नाटक में दिखाया गया है। नाटक में मेला, मदारी, त्योहार, पतंगबाजी काफी कुछ दिखा, जो बाजार के माहौल को जीवंत कर रहा था। कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया। नाटक देखकर लगा कि आज भी इतने सालों बाद इंसान की समस्याएं ज्यादा नहीं बदली। मंदी का दौर तब भी था, और रोज कमाकर खाने वाले आज भी परेशान हैं। -चारू पवार, दर्शक

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