प्रयागराज। 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरूआत होने जा रही है। महाकुंभ में देश के कोने-कोने से साधु संत पहुंचेगे तो वहीं विदेशियों का जमावड़ा देखने को मिलेगा। संगम नगरी प्रयागराज का धर्म और आस्था से गहरा नाता रहा है। यहां सैकड़ों ऐसे मंदिर मौजूद है जो अलग-अलग देवताओं को समर्पित हैं। अगर आप भी महाकुंभ के अवसर पर प्रयागराज में डुबकी लगाने जा रहे हैं, तो यहां के इन 5 मंदिरों का दर्शन जरूर करें, जिनके बिना महाकुंभ का लाभ अधुरा है। ये पांच मंदिर धार्मिक,सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्व रखते हैं। तो चलिए जानते हैं प्रयागराज के इन पांच प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में
प्रयागराज का संकटमोचन हनुमान मंदिर
प्रयागराज में स्थित ये मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में लेटे हुए हनुमान जी हैं। लोगों के बीच ये लेटे हुए हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। ये मंदिर प्रयागराज में गंगा किनारे पर स्थित है। इस मंदिर में 20 फीट लंबी हनुमान जी की मूर्ति है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मां गंगा हर साल सबसे पहले लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन करती हैं।
वेणी धाम मंदिर
श्री वेणी माधव मंदिर प्रयागराज के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर में वेणी माधव की मूर्ति स्थापित है। इन्हें प्रयागराज का पहला देवता कहा जाता है। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे दशाश्वमेध घाट से डेढ़ सौ मीटर अंदर निराला मार्ग- दारागंज रोड पर है। मान्यता है कि भगवान विष्णु जी से प्रार्थना करके ब्रह्मा जी ने इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। इस मंदिर में वेणी माधव की मूर्ति स्थापित है। इन्हें प्रयागराज का पहला देवता कहा जाता है।
पातालपुरी मंदिर
पातालपुरी मंदिर, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,यह स्थान जमीन के नीचे है। संगम तट के किनारे मौजूद ऐतिहासिक अकबर का क़िला और इस किले के अंदर एक तहखाने जैसे स्थान में यह मंदिर आज भी अपनी कई विशिष्टताओं के साथ विद्यमान है। इस मंदिर में भगवान अर्धनारीश्वर रूप में हैं। यहां तीर्थों के राजा प्रयाग की मूर्ति है। यहां भगवान शनि की अखंड जोत भी है। जो साल भर जलती रहती है।
नाग वासुकी मंदिर
इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान रहते हैं। मान्यता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है, जब तक की वह नागवासुकी का दर्शन न कर लें। कुंभ आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह मंदिर महत्व रखता है। इस मंदिर का दर्शन पूजन करने के बाद भी कुंभ तीर्थ सफल माना जाता है।
सरस्वती कूप और अक्षय वट
मान्यताओं के अनुसार यहां बरगद का वृक्ष चार युगों से है। माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, माता सीता और उनके भाई लक्ष्मण ने वनवास के दौरान इसी बरगद के नीचे आराम किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रयागराज में स्नान के बाद जब तक अक्षयवट का पूजन-दर्शन नहीं हो, पुण्य नहीं मिलता। स्थानीय पुजारी के अनुसार, अक्षयवट के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षयवट का दर्शन और पूजन यहां वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूर्ण होती है।
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