
अशोक गौतम भोपाल। मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिलना लगभग तय हो गया है। फॉरेस्ट अधिकारियों ने बीते चार साल में यहां 180 से अधिक बाघ बढ़ने की संभावना जताई है। वहीं, 2018 की गणना में दूसरे स्थान पर रहा कर्नाटक तीसरे पायदान पर खिसक सकता है। वर्ष 2022 की गणना में दूसरे नंबर पर उत्तराखंड का नाम आ सकता है।
केंद्र सरकार विश्व बाघ दिवस पर 29 जुलाई को बाघ आकलन 2022 की विस्तृत रिपोर्ट जारी करने जा रही है। इस रिपोर्ट में बाघों के राज्यवार आंकड़े सार्वजनिक किए जाएंगे। हालांकि, 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैसूर में राष्ट्रीय स्तर पर और जोन स्तर पर बाघों की संख्यात्मक रिपोर्ट जारी कर चुके हैं। इसके अनुसार, पूरे देश में 3,167 बाघ हैं। इस रिपोर्ट में मध्य भारत लैंडस्केप में सबसे अधिक बाघ पाया जाना बताया गया था। बाघ, तेंदुआ सहित सभी वन्य प्राणियों की गणना हर चार साल में की जाती है। यह गणना मध्यप्रदेश में नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 के बीच की गई थी। अधिकारियों का कहना है कि गणना के दौरान प्रदेश में करीब 15 ऐसे वन क्षेत्रों में बाघों की उपस्थिति देखी गई, जहां पहले कभी बाघ नहीं दिखे।
राज्य में जन्मदर बेहतर
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में साढ़े चार साल में 160 बाघों की मौत विभिन्न कारणों से हुई। 2023 के छह महीनों में ही 26 बाघ मर चुके हैं। इधर, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में इससे कम बाघों की मौत हुई है। हालांकि, एनटीसीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बाद भी मध्यप्रदेश में बाघों की जन्मदर स्थिति बेहतर है।
8 साल पहले हम तीसरे नंबर पर थे : जानकारी के अनुसार, 2014 में मप्र बाघों की संख्या के मामले में तीसरे नंबर पर था। तब मप्र में बाघों की संख्या घटकर 308 हो गई थी। जबकि कर्नाटक पहले नंबर पर था और वहां 406 बाघ थे।
2018 की गणना के अनुसार बाघों की संख्या
मध्यप्रदेश 526
कर्नाटक 524
उत्तराखंड 442
महाराष्ट्र 312
तमिलनाडु 264
इन तीन कारणों से बढ़े मध्यप्रदेश में बाघ
- बेहतर वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट प्लान के चलते बाघों को पर्याप्त भोजन-पानी मिल रहा है। इससे वंश वृद्धि के लिए माहौल बेहतर हुआ है।
2. सुरक्षा के लिए स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स बनाया गया। इससे शिकार पर काफी हद तक अंकुश लगा है। बाघों की प्राकृतिक मौत 60 फीसदी से अधिक हो गई है।
3. बाघों के संरक्षण के लिए नए टाइगर रिजर्व और अभयारण्य बनाए गए हैं। सौ से अधिक वन ग्रामों को जंगलों से विस्थापित किया गया।
मप्र में टाइगर कंजर्वेशन की दिशा में अच्छा काम हो रहा है। बीते सालों में यहां बाघों की संख्या बढ़ी है। इस बार भी पूरा भरोसा है कि मप्र का टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार रहेगा। – जेएस चौहान, पीसीसीएफ वन्य प्राणी