
मनीष दीक्षित-भोपाल। प्रदेश में चल रही योजनाओं और विकास कार्यों के लिए राशि जुटाने सीएम डॉ. मोहन यादव, सीएस अनुराग जैन और अफसरों की टीम मंथन कर रही है। इसका रिजल्ट बजट में देखने को मिलेगा। एक बात तय है कि सरकार का फोकस राजस्व वसूली खासकर जीएसटी पर होने वाला है। सूत्रों की मानें तो बजट में सरकार ऐसे कदम उठाएगी, जिससे जीएसटी का बेस बढ़ाया जा सकता है। ज्यादा लोगों को इसके दायरे में लाने के प्रयास किए जा सकते हैं। जीएसटी में चोरी को कम करने के उपाय भी लागू हो सकते हैं।
जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) ने कई कर चोरी-ग्रस्त वस्तुओं की पहचान की है, जिनमें लोहा, तांबा, स्क्रैप और मिश्र धातु, पान मसाला, प्लाईवुड, लकड़ी, कागज, इलेक्ट्रॉनिक सामान और संगमरमर और टाइल्स शामिल हैं। आम बजट 2025-26 में कर चोरी करने वाले उद्योगों, कारोबारियों व संस्थानों के लिए ट्रैक एंड ट्रेस मैकेनिज्म का प्रावधान किया गया है।
इनका अवैध कारोबार ज्यादा
उल्लेखनीय है कि मप्र में लोहे व सरिया का अवैध कारोबार बड़े पैमाने होता है। विभाग द्वारा कार्रवाई भी की जाती है, लेकिन यह अवैध कारोबार जारी है। ऐसी ही स्थिति गुटखा, पान मसाला, तंबाकू, प्लाईवुड, लकड़ी, कागज, इलेक्ट्रॉनिक सामान , संगमरमर और टाइल्स का कारोबार करने वालों की भी है। अब नए सिस्टम से ऐसे सभी कर चोरों पर नजर रखना और उनकी धरपकड़ आसान होगा।
जालसाजी को पकड़ने के लिए हो रहा AI का उपयोग
मौजूदा समय में देश में 1.40 करोड़ कारोबार जीएसटी में पंजीकृत हैं। सरकार डाटा एनालिटिक्स और एआई के जरिए जोखिम वाले टैक्सपेयर्स की पहचाने के लिए एक सिस्टम का उपयोग कर रही है और टैक्स चोरी करने वालों का डाटा भी एजेंसियों को शेयर किया जा रहा है। जिससे कि समय पर अपराधियों को पकड़कर कार्रवाई की जा सके और राजस्व में बढ़ोतरी हो ।
भारत में जीएसटी चोरी का प्रमुख तरीका
जीएसटी की चोरी गंभीर चुनौती बनी हुई है। कर चोरी करने वाले सिस्टम की खामियों से भारी राजस्व नुकसान पहुंचा रहे हैं। नकली कंपनियों से फर्जी बिलिंग सबसे आम तरीका है, जिससे गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा किया जाता है। उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2024 में पुणे में 13 राज्यों में फैली 246 फर्जी कंपनियों का बड़ा घोटाला उजागर हुआ, जिसमें मास्टरमाइंड अशरफ इब्राहिम कलावडिया द्वारा 5,000 करोड़ से 8,000 करोड़ रुपए तक की जीएसटी चोरी की गई।
दो तरह से टैक्स चोरी
जीएसटी सिस्टम में कुछ आधारभूत खामियां हैं। उन्हीं का फायदा कर चोरी करने वाले उठाते हैं। कई लोग फर्जी बिल के जरिए इनपुट टैक्स क्रेडिट ले रहे हैं। इसके अलावा कारोबार को कम करके बताया जा रहा है। इसका मतलब है कि प्रोडक्ट की खरीददारी और बिक्री बगैर बिल के हो रही है। बड़े पैमाने पर कैश में लेन-देन हो रहा है।
डमी कंपनियों के माध्यम से की जाती है चोरी
पैन नंबर, आधार और बैंक अकाउंट डिटेल के आधार पर रजिस्ट्रेशन हो जाता है और 72 घंट के भीतर जीएसटी नंबर (GSTN) भी जारी कर दिया जाता है। जीएसटीएन जारी करने के लिए फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं किया जाता है। ऐसे में फर्जी कंपनियां धड़ल्ले से खुल जाती हैं।
टैक्स चोरी का एक तरीका यह भी
टैक्स चोरी की दूसरी बड़ी राह कीमत कम कर बेचना है। मान लीजिए एक मोबाइल की कीमत 50 हजार है। दुकानदार ऑफर करता है कि टैक्स इनवॉयस चाहिए तो कीमत 50 हजार और फेक बिल में वह 45 हजार का है। वह कह सकता है टैक्स इनवॉयस 30 हजार का देते हैं, 15 हजार कैश दे दें। यह दोनों के लिए फायदेमंद है पर सरकार को नुकसान है।
व्यापारी कच्चा (अनौपचारिक) और पक्का (औपचारिक) बिल की दोहरी बहीखाता प्रणाली अपनाकर वास्तविक टर्नओवर को छुपाते हैं, जिससे वे कर देनदारी से बचते हैं। यह न केवल बाजार प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करता है, बल्कि सरकार के राजस्व को भी गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इस समस्या से निपटने के लिए सख्त नीतिगत उपायों, कड़े अनुपालन तंत्र और अत्याधुनिक तकनीकी समाधानों के समावेश की आवश्यकता है, जिससे जीएसटी प्रणाली को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सके। – मिलिंद शर्मा सीए और जीएसटी कंसल्टेंट
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