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कजरी-झूला में सुनाए सावन के गीत, राधा-कृष्ण की लीलाओं को सुनकर भीगा श्रोताओं का मन

भारत भवन में शुक्रवार से शुरू हुआ तीन दिवसीय कजरी-झूला महोत्सव

कजरी झूला गायन बिहार के अलावा यूपी के मिर्जापुर, बनारस और सीमावर्ती इलाकों में किया जाता है जिसका प्रभाव मप्र तक दिखाई देता है। सावन के महीने में झूले डालकर कजरी गाई जाती है जिसमें प्यार, मनुहार, गिले-शिकवे, भक्ति और श्रृंगार के गीत संजोए जाते हैं। भारत भवन में शुक्रवार से तीन दिवसीय कजरी- झूला महोत्सव की शुरुआत हुई, जिसमें पहले दिन शीला त्रिपाठी और फूल सिंह और शोभा चौधरी ने प्रस्तुति दीं। सावन के महीने में जब बेटियां अपने मायके आती हैं तब वे अपनी सखियों के साथ झूला झूलती हैं और कजरी गाती हैं। कई शास्त्रीय गायक भी कजरी गाते हैं। नौका विहार करते हुए कजरी गीत गुनगुनाए जाते हैं। भादो के महीना में कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी पर्व मनाया जाता है। इस दिन झूला डाला जाता है और सुंदर प्रतीकों व अलंकारों के साथ कजरी गायन में शिव-पार्वती, राधा कृष्ण, राम-जानकी से जुड़े मिथक सजीव हो उठते हैं। तरल व सरल धुनें इस गायन की खासियत है।

बघेली में गाए गायकों ने गीत

शीला त्रिपाठी और उनके साथी गायकों ने जुगलबंदी करते हुए सावन के रे बदरिया कारी … प्रस्तुत कर बड़ी संख्या में मौजूद दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं। इन्होंने बघेली लोकगीत सुनाए। इसके बाद सब-इंस्पेक्टर व गायक फूलसिंह मांडरे ने ‘झूला-झूला झूलन जाऊं री माई मोरी सावन आए …’ बघेली के पारंपरिक गीत गाए।

हिंडोला पहलाऊं बेरा, जब झूली री हिंडोला…

गायिका शीला त्रिपाठी ने सोवत गउरा का शिव गौरमय …, सावन के रे बदरिया कारी …, हरे रामा बरसाय गरजय घनघोर …, मइके की डोलिया सजाई…, मैया झूले झुलना …, झूला झूले रे कन्हैया …, जैसी कजरी सुनाईं। इनका हारमोनियम में मांगीलाल ठाकुर ने साथ दिया। तबले पर अभय ठाकुर, ढोलक पर कमलेश मेवाड़ा संगत पर थे। फूलसिंह मांडरे ने अपने साथी कलाकारों के साथ मिलकर बारा मासी, कजरी …, हिंडोला पहलाऊं बेरा जब झूली री हिंडोल …, झूला, शुभ दिन आन लगे, सावन के …, कजरी के हरे रामा भूल गए मोरों गांव सावरिया जैसी कजरी-झूला गीत सुनाए।

आज यह गायक देंगे प्रस्तुति

कजरी झूला गायन महोत्सव में 22 जुलाई को मणिमाला सिंह, उर्मिला पांडे, मधुमिता नकवी अपने साथी कलाकारों के साथ प्रस्तुति देंगी। कार्यक्रम शाम 7 बजे से रात तक 9 बजे तक चलेगा।

शृंगार व वियोग दोनों के गीत संजोए जाते हैं

कजरी को गाने में एक अलग ही माहौल बन जाता है, जब चारों तरफ हरियाली दिखाई देती है। कजरी में श्रृंगार और वियोग दोनों तरह के रस पाए जाते हैं। ननद-भाभी की नोकझोंक के साथ कृष्ण की लीला भी इसमें गाई जाती है। -शीला त्रिपाठी, गायिका

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