Aakash Waghmare
12 Nov 2025
लिप्पन आर्ट को गुजरात में चित्तर काम या मिट्टी की दीवार कला के रूप में भी जाना जाता है। यह कला रूप वास्तव में मिट्टी को जीवन और कलात्मकता प्रदान करता है। यह कहना है, कच्छ के धोरडो गांव से आए पारंपरिक कलाकार रहीम अली मुतवा एवं अजीज अहमद का। वे इन दिनों इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लिप्पन कला का प्रशिक्षण दे रहे हैं। लिप्पन को मड वॉशिंग के नाम से भी जाना जाता है।
जिसका उपयोग उमस भरे गर्म मौसम में घरों को ठंडा रखने के लिए किया जाता है और ऐसा स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके किया जाता है। कच्छ में, कारीगर मिट्टी और ऊंट के गोबर के मिश्रण को एक साथ मिलाते हैं। यह मिट्टी की नक्काशी आमतौर पर घर की दीवारों के अंदर और बाहर की जाती है, जिन्हें भुंगा के नाम से जाना जाता है, जो ठंडक रखने में मदद करता है। साथ ही सजावट भी करता है।
इस कला रूप का पसंदीदा रंग सफेद है। कच्छ में लिप्पन काम के कारीगर इतने अनुभवी हैं कि वे इस कला को सीधे लकड़ी के बोर्ड पर या फिर घरों की दीवारों पर करते हैं। लिप्पन में आमतौर पर मोर, ऊंट, हाथी, आम के पेड़, मंदिर और कच्छ में जीवन की दैनिक गतिविधियों को कला के माध्यम से चित्रित करते हैं। इसमें मुख्य रूप से भौगोलिक संरचना और आकृतियां होती हैं। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि यह कला बहुत टिकाऊ और मजबूत हैं क्योंकि यह मिट्टी और दर्पणों से बनती है। -रहीम अली मुतवा, कलाकार