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सर्दी-गर्मी छोड़िए जनाब…देश की राजनीति में इन दिनों दलबदल का मौसम

मनीष दीक्षित। कुदरत के अपने नियम हैं, सब कुछ मौसम या समय के हिसाब से ही होता है। जैसे, सीताफल का एक मौसम होता है। लीची का एक मौसम होता है, परंतु वर्तमान राजनीति में राजनीतिक दलों के पेड़ पर दलबदलू नामक फल भी पकने लगे हैं, जिनका कोई तय समय नहीं है। यह इस कदर पकते हैं कि कभी खुद ही टपकते हैं, तो कभी जरा सा कंकड़ मारने भर से टपककर दूसरे राजनीतिक दल की टोकरी में जा गिरते हैं। लेने वाला दल इसे मीठा, स्वादिष्ट और उपयोगी बताता है, परंतु जिस दल रूपी संस्था से दलबदलू फल टपकता है, वो इसे अनुपयोगी बताकर खारिज कर देते है।

इनकी चारित्रिक विशेषता यह है कि ये बहुत संयमी होते हैं। इतने चुपचाप तरीके से काम करते हैं कि कई बार तो इनके करीबियों तक को भनक नहीं लगती। अधिकांश यही दलील दी जाती है कि उन्होंने पुराने दल से इसलिए रिश्ता तोड़ा, क्योंकि उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची या वहां घुटन हो रही है। नए दल के नेताओं और उनके कामों के भी वे अचानक प्रशंसक बन जाते हैं ।

यह राजनीति का ऐसा विचित्र चरित्र होता है, जिसने साम, दाम, दंड, भेद जैसी परंपराओं को अक्षुण्ण बनाए रखा है। दलबदलू ऐसा निराला प्राणी है, जो सब पार्टियों की नाक में दम किए रहता है। दलबदलू में भाईचारे की भावना इतनी प्रबल होती है कि कुछ दिनों पहले तक जिस दल की वह आलोचना और भ्रष्टाचारियों का अड्डा कह रहा होता है, समझौते होने के दो मिनट बाद उस दल को देश की प्रतिष्ठा का सूचक बताने लगता है। राजनीति में कोई दोस्त-दुश्मन नहीं होता, जाने कब किसे दोस्त बनाकर उससे दुश्मनी निकालनी पड़े। जिस दल ने इस पर बेपनाह आरोप लगाए होते हैं, उस दल में प्रवेश के समय ‘बीत गई,सो बीत गई’ कहकर आरोपों को दरकिनार कर देता है और नई पार्टी के नेताओं के साथ विजयी मुद्रा बना खड़ा हो जाता है।

जब ‘माई बाप’ दलबदल करते हैं तो इनके समर्थकों की फौज चल पड़ती है अपने-अपने ‘आकाओं ‘ के पीछे। दलबदल का आर्थिक पक्ष यह है कि इससे दलगत जीडीपी बढ़ती है। एक नेता पार्टी में आता है, तो साथ में अपने एजेंट, कारोबारी मित्र और पैसा बनाने के नए तरीके भी साथ लाता है। इस तरह पैसा तेजी से घूमता है। दलबदल का खेल इन दिनों पूरे शबाब पर है। मैंने भी एक दल बदलने वाले नेताजी को पकड़ा। वो अरसे तक एक दल में रहे और फिर दूसरे दल में गए, तो बोले- मैं जन्म से इसी दल का हूं। मैंने पूछा, महाराज ऐसे कैसे आप इस नए दल के हो गए… तो वो बोले- गुरु, जिस तरह इस धरा में रहने वाला हर शख्स ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का राग जपता है, उसी तरह हर दल का नेता दल कुटुम्बकम का राग जपता है। हमसे रहा नहीं गया तो एक सवाल और पूछा – दलबदल का कोई नुकसान नहीं है? वो बोले-फायदे तो बहुत है। इससे मेलजोल बढ़ता है, सामाजिकता का दायरा विस्तृत होता है। कुछ समय के लिए पूछपरख भी बढ़ जाती है? मगर इन सब बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। जिसमें जिसको फायदा, वो वहां चला जाता है। गलती हमारी भी या फिर कहें हमारी ही है कि हम ही आखिर में दलबदलू का फेवर करते हैं और वोट देते हैं। हम वोट देते वक्त कौन सा देखते हैं किसी की विचारधारा को या उसकी अच्छी या बुरी चीजों को।

जनवरी से अब तक इन नेताओं ने ली भाजपा की सदस्यता

दिनेश अहिरवार         पूर्व विधायक, टीकमगढ़
वीरेन्द्र सिंह राठौर       कांग्रेस के पूर्व विधायक
कमलापत आर्य          पूर्व विधायक
एकता ठाकुर             सीहोरा विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी
सत्यपाल सिंह पटेल     गोटेगांव से कांग्रेस विधानसभा प्रत्याशी
हर्षित गुरू                 युवक कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष
रजनी बालपाण्डे         पाढूर्ना कांग्रेस महिला जिला अध्यक्ष
ममता सिंह सेंगर         महिला कांग्रेस प्रदेश सचिव
योगेन्द्र सिंह जौदान      बंटी बना शाजापुर कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष
अजय सिंह यादव        कांग्रेस मीडिया विभाग के पूर्व उपाध्यक्ष व प्रवक्ता
वीरेन्द्र बिहारी शुक्ला    पूर्व जिलाध्यक्ष डिंडौरी कांग्रेस
अर्चना सिंह                सिंगरौली जिला पंचायत उपाध्यक्ष
हटेसिंह पटेल             युवक कांग्रेस उज्जैन के पूर्व अध्यक्ष
अलग-अलग जिलों के 1 दर्जन से अधिक जनपद अध्यक्ष

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