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मणिपुर के सभी शैली के नृत्य रूपों का आधार है लाई हरोबा

जनजातीय संग्रहालय के स्थापना दिवस समारोह पर आयोजित ‘महुआ महोत्सव’ का समापन

जनजातीय संग्रहालय की स्थापना के 11वें वर्षगांठ समारोह पर आयोजित ‘महुआ महोत्सव’ के समापन दिवस पर मणिपुर के नृत्य-गायन की प्रस्तुतियां दी गईं। इसमें मणिपुर के नामीराकपम टिकेन एवं साथी द्वारा मणिपुर लोक संगीत के साथ थांग-टा, लाई हरोबा, ढोल-ढोलक चोलम, पुंग चोलम और बसंत रास की परफॉर्मेंस दी। लाई हरोबा मणिपुर के मुख्य उत्सवों में से एक है। यह मणिपुर के सभी शैली के नृत्य रूपों का आधार है। इस मौके पर एडीजी जेल अखेतो सेमा, डॉ. धर्मेंद्र पारे उपस्थित रहे।

‘बसंत रास’ में दिखी मणिपुरी श्रीकृष्ण लीला की झलक

महोत्सव के दौरान बसंत रास की प्रस्तुति दी गई। बसंत रास मणिपुरी श्रीकृष्ण लीला का रूप है। चैतन्य के मंगलाचरण से लीला की शुरुआत होती है। इसके बाद लाल अबीर से होली खेली जाती है। लीला में श्रीकृष्ण, चंद्रावली की तलाश करते हैं, यह देखकर राधा गुस्सा हो जाती हैं, फिर श्रीकृष्ण को झुककर राधा से मनुहार करते हुए क्षमा मांगनी पड़ती है। इसके अलावा कलाकारों ने कठपुतली कला में धागा शैली पर आधारित राजस्थानी संगीत पर नृत्य और छोटी- छोटी हास्य कहानियों की प्रस्तुति दी।

थांग-टा और ढोल-ढोलक चोलम की दी प्रस्तुति

इस दौरान थांग-टा और ढोल-ढोलक चोलम की प्रस्तुति दी गई। इसमें ‘थांग’ का शाब्दिक अर्थ तलवार और ‘टा’ का अर्थ भाला है। यह नृत्य मणिपुर की युद्धकला का प्रदर्शन है, जिसमें नर्तक तलवार और भाला लेकर काल्पनिक युद्ध करते हैं। तलवार और भाले के साथ इस युद्ध-नृत्य में मल्लयुद्ध शैली का भी समावेश होता है। वहीं, ढोल-ढोलक चोलम की प्रस्तुति होली के अवसर पर दी जाती है। यह उत्सव पांच दिनों तक चलता है और उत्सव के दूसरे दिन मंदिर में पूजा के बाद ढोल-ढोलक चोलम नृत्य किया जाता है।

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