
नई दिल्ली। देशभर में जल्द ही लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। देश के 600 से ज्यादा वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को एक चिट्ठी लिखी है। इस पत्र के जरिए वकीलों ने न्यायपालिका और जजों के साथ खड़े होने की बात कही है। वहीं, वकीलों ने न्यायालय पर हो रहे हमले पर चिंता जाहिर की। इन सभी वकीलों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखकर न्यायालय और जजों का समर्थन किया है।
सीजेआई को चिट्ठी लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के अलावा मनन कुमार मिश्रा, आदिश अग्रवाल, चेतन मित्तल, पिंकी आनंद, हितेश जैन, उज्ज्वला पवार, उदय होल्ला, स्वरूपमा चतुर्वेदी का नाम शामिल है।
More than 500 prominent lawyers, including Harish Salve, write to CJI DY Chandradchud expressing concern over attempts to undermine the judiciary’s integrity.
The letter reads "as people who work to uphold the law, we think it's time to stand up for our courts. We need to come… pic.twitter.com/iXIIDbgToP
— ANI (@ANI) March 28, 2024
‘खास समूह’ कोर्ट के फैसलों पर डाल रहे असर
वकीलों का कहना है कि कुछ ‘खास समूह’ न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और कोर्ट के फैसलों पर असर डाल रहे हैं। पत्र में कहा गया कि यह समूह राजनीतिक एजेंडों के साथ आधारहीन आरोप लगा रहे हैं और न्यायपालिका की छवि के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं।
पत्र में कहा गया कि भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे राजनीतिक चेहरों से जुड़े केसों में यह हथकंडे जाहिर तौर पर दिखते हैं। ऐसे मामलों में अदालती फैसलों को प्रभावित करने और न्यायपालिका को बदनाम करने के प्रयास सबसे अधिक स्पष्ट होते हैं।
यह अदालत के साथ खड़े होने का समय : वकील
पत्र में लिखा है- कानून को बनाए रखने के लिए काम करने वाले लोगों के रूप में हम सोचते हैं कि यह हमारी अदालतों के लिए खड़े होने का समय है। हमें एक साथ आने और गुप्त हमलों के खिलाफ बोलने की जरूरत है, यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारी अदालतें हमारे लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में इन सोचे-समझे हमलों से अछूता रहीं हैं।
‘अदालतों की गरिमा पर आघात करने वाली कहानियां गढ़ी गईं’
पत्र लिखने वाले वकीलों ने कहा- इस समूह ने ‘बेंच फिक्सिंग’ की पूरी कहानी गढ़ी है, जो न केवल अपमानजनक है बल्कि अदालतों के सम्मान और गरिमा पर आघात है। इसमें कहा गया- ‘‘ये लोग अपनी अदालतों की तुलना उन देशों से करने के स्तर तक चले गए, जहां कानून का कोई शासन नहीं है।’’ इन अधिवक्ताओं ने कहा कि इन आलोचकों का रवैया कुछ ऐसा है कि जिन फैसलों से वे सहमत होते हैं, उनकी तारीफ करते हैं, लेकिन उनकी असहमति वाले किसी भी फैसले की वे अवमानना करते हैं।
पत्र के अनुसार, ‘‘यह दोहरा व्यवहार उस सम्मान के लिए नुकसानदायक है जो किसी भी आम आदमी को हमारी कानून प्रणाली के लिए होना चाहिए।’’
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